Book Title: Jain Darshan me Dravya ki Avadharna Author(s): Kapurchand Jain Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf View full book textPage 8
________________ अक्षरात्मक (संस्कृत, हिन्दी आदि भाषा के शब्द ) बन्ध भाषात्मक अनक्षरात्मक ( पशुओं के संकेत ) शब्द Jain Education International होना चाहिए। जैसे कोई परमाणु दो स्निग्ध शक्त्यंश वाला है तो दूसरा रूक्ष) वाला होना चाहिए। इसी प्रकार ३ शक्त्यंश वाले के लिए ५ प्रायोगिक तत ( मृदंग आदि का शब्द) वितत ( बीणा आदि का शब्द) परस्पर में श्लेष बन्ध कहलाता है बन्ध का ही पर्यायवाची शब्द है संयोग, किन्तु संयोग में केवल अन्तर रहित अवस्थान होता है raft बन्ध में एकत्व होना, एकाकार हो जाना आवश्यक है। प्रायोगिक और वैस्र सिक के भेद से बन्ध दो प्रकार का है। प्रायोगिक भी Satta प्रायोगिक तथा जीवाजीव प्रायोगिक के भेद से दो प्रकार का है । लाख और लकड़ी आदि का बन्ध अजीव प्रायोगिक बन्ध है तथा कर्म और नोकर्म का बन्ध जीवाजीव प्रायोगिक बन्ध है।' वैस्रमिक भी सादि और अनादि के भेद से दो प्रकार का है । धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों का बन्ध तो अनादि है और पुद्गलों का बन्ध सादि है । जो द्वयणुक आदि स्कन्ध बनते हैं वह सादि बन्ध हैं । परमाणुओं में परस्पर में बन्ध क्यों और कैसे होता है इस समस्या पर दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों दार्शनिकों ने प्रर्याप्त प्रकाश डाला है । यह बात दोनों को ही मान्य है कि स्निग्धत्व और रूक्षत्व से कारण बन्ध होता है-स्निग्धरूक्षत्वाद् बन्ध' यह ऊपर कहा जा चुका है कि परमाणु में दो स्पर्श-शीत और ऊष्ण में से एक, तथा स्निग्ध और रूक्ष में से एक पाये जाते हैं। इनमें से स्निग्ध और रूक्ष के कारण इनमें बन्ध होता है और स्कन्धों की उत्पत्ति होती है। स्निग्धत्व का अर्थ है चिकनापन और रूक्षत्व का अर्थ है रूखापन । वैज्ञानिक परिभाषा में ये पाजिटिव और निगेटिव है। इस प्रकार यह बन्ध तीन रूपों में होता है ( १ ) स्निग्ध + स्निग्ध परमाणुओं का ( २ ) रूक्ष + रूक्ष परमाणुओं का तथा ( ३ ) स्निग्ध + रूक्ष परमाणुओं का * अभाषात्मक दिगम्बर परम्परा में द्वययधिकादिगुणानांतु' सूत्र के अनुसार दो गुण अधिक वाले परमाणुओं का बन्ध होता है। गुण का अर्थ हैं शक्त्यंश ( शक्ति का अंश ) बन्ध होने के लिए यह आवश्यक है कि जिन दो परमाणुओं में बन्ध हो रहा है उनमें दो शक्त्यंशों का अन्तर घन ( झालर आदि का शब्द ) वैस्रसिक ( मेघ गर्जन ) सीविर ( शंख आदि का शब्द ) For Private & Personal Use Only परमाणु जिसके साथ बन्ध होना है--उसे ४ शक्त्यंश (स्निग्ध या शक्त्यंश तथा = शक्त्यंश वाले के लिए १० शक्त्यंश वाला होना १. तत्वार्थसार ३/६७ २. तत्वार्थ सूत्र ५ / ३३ ३. प्रो० जी० आर० जैन के अनुसार स्निग्धत्व और रूक्षत्व वैज्ञानिक परिभाषा में निगेटिव और पाजिटिव हैं, वे लिखते हैं- 'तत्वार्थ सूत्र के पंचम अध्याय के सूत्र नं० ३३ में कहा गया है— 'स्निग्धरूक्षत्वाद्बन्ध:' अर्थात् स्निग्धत्व और रूक्षत्व गुणों के कारण एटम एक सूत्र में बंधा रहता है । पूज्यपाद स्वामी ने सर्वार्थसिद्धि टीका में एक स्थान पर लिखा है-'स्निग्धरूक्षगुणनिमित्तो विद्यतु' अर्थात् बादलों में स्निग्ध और रूक्ष गुणों के कारण विद्युत् की उत्पत्ति होती है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि स्निग्ध का अर्थ चिकना और रूक्ष का अर्थ खुरदुरा नहीं ये दोनों शब्द वास्तव में विशेष टेक्निकल अर्थों में प्रयोग किये गये । जिस तरह एक अनपढ़ मोटर ड्राइवर बैटरी के एक तार को ठण्डा और दूसरे तार को गरम कहता है (यद्यपि उनमें से कोई तार न ठण्डा होता है न गरम) और जिन्हें विज्ञान की भाषा में पाजिटिव व निगेटिव कहते हैं, ठीक उसी तरह जैन धर्म में स्निग्ध और रूक्ष शब्दों का प्रयोग किया गया है। डा० बी० एन० सील ने अपनी कैम्ब्रिज से प्रकाशित पुस्तक 'पाजिटिव साइन्सिज आफ एनशियन्ट हिन्दूज' में स्पष्ट लिखा है- 'जैनाचार्यों को यह बात मालूम थी कि भिन्न-भिन्न वस्तुओं को आपस में रगड़ने से पाजिटिव और निगेटिव बिजली उत्पन्न की जा सकती है। इन सब बातों के समक्ष इसमें कोई सन्देह नहीं रह जाता कि स्निग्ध का अर्थ पाजिटिव और रूक्ष का अर्थ निगेटिव विद्युत् है ।', द्रष्टव्य 'तीर्थंकर महावीर स्मृति ग्रन्थ', जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर प्रकाशन, पृ० २७५-७६४. तत्वार्थ सूत्र, ५/३६ जैन दर्शन मीमांसा ५६ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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