Book Title: Jain Darshan aur Adhunik Vigyan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Shwetambar_Sthanakvasi_Jain_Sabha_Hirak_Jayanti_Granth_012052.pdf

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Page 7
________________ जैन विद्या के आयाम खण्ड-६ २३६ भूगोल जो जैन, बौद्ध व हिन्दुओं में लगभग समान रहा है, उसकी भरतक्षेत्र कितना लम्बा चौड़ा है, मेरु पर्वत की ऊंचाई क्या है? सूर्य व सामान्य निरीक्षणों के आधार पर ही कल्पना की गई थी, फिर भी उसे चन्द्र की गति क्या है? उनमें ऊपर कौन है आदि? ऐसे अनेक प्रश्न पूर्णतः असत्य नहीं कहा जा सकता। हैं जिनका धर्म व साधना से कोई सम्बन्ध नहीं है। हम देखते हैं कि न आज हमें यह सिद्ध करना है कि विज्ञान धार्मिक आस्थाओं केवल जैन-परम्परा में अपितु बौद्ध व ब्राह्मण-परम्परा में भी ये मान्यतायें का संहारक नहीं पोषक भी हो सकता है। आज यह दायित्व उन समान रूप से प्रचलित रही हैं। एक तथ्य और हमें समझ लेना होगा वैज्ञानिकों का एवं उन धार्मिकों का है, जो विज्ञान व धर्म को परस्पर वह यह कि तीर्थंकर या आप्त पुरुष केवल हमारे बंधन व मुक्ति के विरोधी मान बैठे हैं, उन्हें यह दिखाना होगा कि विज्ञान व धर्म एक सिद्धान्तों को प्रस्तुत करते हैं। वे मनुष्य की नैतिक कमियों को इंगित दूसरे के संहारक नहीं, अपितु पोषक हैं। यह सत्य है कि धर्म और करके वह मार्ग बताते हैं जिससे नैतिक कमजोरियों पर या वारमामय दर्शन के क्षेत्र में कुछ ऐसी अवधारणाएं हैं जो वैज्ञानिक ज्ञान के कारण जीवन पर विजय पायी जा सके। उनके उपदेशों का मुख्य संबंध व्यक्ति ध्वस्त हो चुकी हैं, लेकिन इस सम्बन्ध में हमें चिन्तित होने की के आध्यात्मिक विकास, सदाचार तथा सामाजिक जीवन में शान्ति व आवश्यकता नहीं है। प्रथम तो हमें यह निश्चित करना होगा कि धर्म सह अस्तित्व के मूल्यों पर बल देने के लिए होता है। अतः सर्वज्ञ के का सम्बन्ध केवल मानवीय जीवन मूल्यों से है, खगोल के वे तथ्य जो नाम पर कही जाने वाली सभी मान्यतायें सर्वज्ञप्रणीत हैं, ऐसा नहीं है। आज वैज्ञानिक अवधारणा के विरोध में हैं, उनका धर्म व दर्शन से कोई कालक्रम में ऐसी अनेक मान्यताएं आयी जिन्हें बाद में सर्वज्ञ प्रणीत सीधा संबंध नही है। अत: उनके अवैज्ञानिक सिद्ध होने पर भी धर्म कहा गया। जैन धर्म में खगोल व भूगोल की मान्यतायें भी किसी अंश अवैज्ञानिक सिद्ध नहीं होता। हमें यह ध्यान रखना होगा कि धर्म के में इसी प्रकार की हैं। पुनः विज्ञान कभी अपनी अंतिमता का दावा नहीं नाम पर जो अनेक मान्यतायें आरोपित कर दी गयी हैं वे सब धर्म का करता है अत: कल तक जो अवैज्ञानिक कहा जाता था, वह नवीन अनिवार्य अंग नहीं है। अनेक तथ्य ऐसे हैं जो केवल लोक व्यवहार वैज्ञानिक खोजों से सत्य सिद्ध हो सकता है। आज न तो विज्ञान से के कारण धर्म से जुड़ गये हैं। भयभीत होने की आवश्यकता है और न उसे नकारने की। आवश्यकता आज उनके यथार्थ स्वरूप को समझने की आवश्यकता है। है विज्ञान और अध्यात्म के रिश्ते के सही मूल्यांकन की। भय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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