Book Title: Jain Chand Shastra Parampara
Author(s): Narottam Narayan Gautam
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 5
________________ 438 कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड . .....-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.. बादी श्री देवसूरिर्गणगगनविधौ विभ्रतः शारदायाः, नाम प्रत्यक्षपूर्व सुजयपदभृतौ मङ्गलाह्वस्य सूरेः / पादद्वन्द्वा रविन्देऽम्बुमधुपहिते भंग भुंगी वधानो, वृत्ति सोभोऽभिरामामकृत कृतिभृतां वृतरत्नाकरस्य / (३)मुनि क्षेमहंस ने इस पर टिप्पन की रचना की है। ये वि० १५वीं शताब्दी में विद्यमान थे। (4) अमरकीति और उनके शिष्य यशकीर्ति ने इस पर वृत्ति की रचना की है। (5) मेरूसुन्दरसूरि ने इस पर बालावबोध की रचना की है। ये १६वीं शताब्दी में विद्यमान थे। (6) उपाध्याय समयसुन्दरगणि ने इस वृत्ति की रचना वि० सं० 1964 में की है। इसके अन्त में वृत्तिकार ने अपना परिचय इस प्रकार दिया है वृत्तरत्नाकरे वृत्ति गणिः समयसुन्दरः। षष्ठाध्यायस्य संबद्धा पूर्णीचक्रे प्रयत्नतः // 1 // संवति विधिमुखः निधि-रस शशिसंख्ये दीपपर्व दिवसे च / जालोरनामनगरे लुणिया कसलापितस्थाने // 2 // श्रीमत् खरतरगच्छे श्री जिनचन्द्रसूरयः / / तेषां सकलचन्द्राख्यो विनेयो प्रथमोऽभवत् // 3 // तच्छिष्यसमयसुन्दरः सत्तां वृत्ति चकार सुगतराम् / श्रीजिनसागरसूरिप्रवरे गच्छाधिराजेऽस्मिन् // 4 // इस प्रकार अन्यान्य ग्रन्थों में भी छन्द विषयक रचनाएँ अपूर्ण रूप से मिलती हैं। इस विषय पर अभी शोध की आवश्यकता है, जिससे कि जैन साहित्य पल्लवित एवं पुष्पित हो सके। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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