Book Title: Jain Bhugol par Ek Drushtipat Author(s): Nemichandra Singhi Publisher: Z_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf View full book textPage 6
________________ . ६३४ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठम खण्ड अभिजित नक्षत्र को ६३०: ३२५ = दिन तथा उत्तरायण के पुष्य नक्षत्र को ६६० और दक्षिणायन के पुष्य नक्षत्र को १३२० : ३०५= ८४ दिन लगते हैं (७) भारतीय पंचांगों के अनुसार राहू विरुद्ध दिशा में किस तरह चलता है, यह नीचे दर्शाते है : तारीख राहू-नक्षत्र व चरण पंचांग १८-४-१९७६ स्वाती-चतुर्थ चरण सोलापुर दाते पंचाग २०-६-१९७६ , तृतीय २२-८-१९७६ , द्वितीय ॥ २३-१०-१९७६ , प्रथम , २५-१२-१९७६ चित्रा-चतुर्थ २६-२-१९७७ , तृतीय ३०-४-१९७७ ,, द्वितीय बंबई जन्मभूमि पंचांग २-७-१९७७ " प्रथम ३-६-१९७७ हस्त-चतुर्थ , ७-११-१९७७ " तृतीय , ७-१-१९७८ , द्वितीय , ११-३-१९७८ " प्रथम , इस तालिका से स्पष्ट है कि राहू दो वर्षों में स्वाती, चित्रा और हस्त ये तीन नक्षत्र पार कर सका है । दिशा भी जैन भूगोल से विपरीत रही है। (८) सूर्य प्रकाश की मर्यादा त्रिलोकसार गाथा ३९७ के अनुसार निम्न प्रकार है मंदर गिरि मज्झादो जावय लवणुवहि छठ्ठ भागो दु। हेवा अद्वरससया उरि सम जोयणा ताओ ॥३६७।। अर्थात् सूर्य का प्रकाश सुदर्शन मेरु के मध्य भाग से लेकर लवणसमुद्र के छठवें भाग पर्यंत फैलता है, तथा नीचे १८०० अठारह सौ योजन और ऊपर एक सौ (१००) योजन पर्यंत फैलता है । भावार्थ-सूर्य यदि ककं वृत्त पर हो तो मेरु मध्यपर्यंत ४६८२० योजन । लवणसमुद्र में विस्तार २ लाख योजन के छठवे भाग ३३३३३३ योजन तक तथा सूर्य के ऊपर ज्योतिर्लोक पर्यंत १०० योजन और सूर्य के नीचे पृथ्वी ८०० योजन व पृथ्वी की जड़ १००० योजन कुल १८०० योजनपर्यंत प्रकाश फैलता है। सूर्य प्रकाश की मर्यादा में असमानता क्यों है, इसका स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। (8) सूर्य मेरु मध्य से ४६८२० योजन से ५०३३० योजन तक ५१० योजन तक १८४ परिधियों में, जो २५६ योजन अंतराल में होती हैं, भ्रमण करता है । एक परिधि में भ्रमण करने को ६० मुहूर्त अर्थात दो दिन लगते हैं माना यह जाता है कि कर्कवृत्त की परिधि से मकरवृत्त की परिधि १८४वीं है, अतः प्रथम १८३ परिधियाँ कर्कवृत्त की हुई और १८४वीं परिधि मकरवृत्ति की पहिली परिधि हुई । इस प्रकार १८३ परिधियाँ कर्कवृत्त की हुई और लौटने पर १५३ परिधियाँ मकरवृत्त की हुई इस तरह १८३ दिन दक्षिणायन के और १८३ दिन उत्तरायन के हुए । मगर कठिनाई यह है कि यदि सूर्य को एक परिधि पार करने में दो दिन लगते हैं तो १८३ परिधियों को दक्षिणायन के समय १८३४२-३६६ दिन लग जावेंगे उसी तरह उत्तरायण के समय भी ३६६ दिन लगेंगे । यदि एक अयन में १८३ दिन होते है तो परिधियाँ १८३:२=६१३होंगी। इस शंका का समाधान कठिन जान पड़ता है । अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार सौर वर्ष ३६५१ दिन का होता है, ३६६ दिन का नहीं। (१०) त्रिलोकसार गाथा ३७६ में दिन रात्रि का परिमाण इस प्रकार है . . * जम्पूद्वीप में दो सूर्य हैं । इसीलिए शंका का समाधान हो जाता है। -सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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