Book Title: Jain Anuman ki upalabdhiya Author(s): Darbarilal Kothiya Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf View full book textPage 1
________________ Jain Education International जैन अनुमान की उपलब्धियाँ डॉ. दरबारीलाल कोठिया, वाराणसी प्राग् वृत्त अध्ययन से अवगत होता है कि उपनिषद्काल में अनुमान को श्रावश्यकता एवं प्रयोजन पर बल दिया जाने लगा था । उपनिषदों में 'आत्मा वारे द्रष्टव्यः श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यः " आदि वाक्यों द्वारा श्रात्मा के श्रवण के साथ मनन पर भी बल दिया गया है, जो उपपत्तियों (युक्तियों) के द्वारा किया जाता था । इससे स्पष्ट है कि उस काल में अनुमान को भी श्रुति की तरह ज्ञान का साधन माना जाता था— उसके विना दर्शन प्रपूर्ण रहता था । यह सच है कि अनुमान का 'अनुमान' शब्द से व्यवहार होने की अपेक्षा 'वाकोवाक्यम्,' 'आन्वीक्षिकी,' 'तर्कविद्या,' 'हेतुविद्या' जैसे शब्दों द्वारा अधिक होता था । प्राचीन जैन वाङमय में ज्ञानमीमांसा (ज्ञानमार्गणा) के अन्तर्गत अनुमान का ' हेतुवाद' शब्द से निर्देश किया गया है और उसे श्रुत का एक पर्याय ( नामान्तर) बतलाया गया है । तत्त्वार्थ सूत्रकार ने उसका 'अभिनिबोध' नाम से उल्लेख किया है। तात्पर्य यह कि जैन दर्शन में भी अनुमान अभिमत है तथा प्रत्यक्ष ( सांव्यवहारिक और पारमार्थिक ज्ञानों) की तरह उसे भी प्रमाण एवं अर्थनिश्चायक माना गया है । ग्रन्तर केवल उनमें वैशद्य और प्रवेशद्य का है । प्रत्यक्ष विशद है और अनुमान अविशद ( परोक्ष ) । वैशेषिकों द्वारा अनुमान- विमर्श अनुमान के लिये किन घटकों की श्रावश्यकता है, इसका प्रारम्भिक प्रतिपादन कणाद ने किया प्रतीत होता है । उन्होंने अनुमान का 'अनुमान' शब्द से निर्देश न कर 'लैंगिक' शब्द से किया है, जिससे ज्ञात होता है कि अनुमान का मुख्य घटक 'लिंग' है । सम्भवत: इसी कारण उन्होंने मात्र लिंगों, लिंगरूपों और लिंगाभासों का निरूपण किया है। उसके और भी कोई घटक हैं, इसका कणाद ने कोई उल्लेख नहीं किया । उनके भाष्यकार प्रशस्तपाद ने अवश्य प्रतिज्ञादि पांच अवयवों को उसका घटक प्रतिपादित किया है। नैयायिकों द्वारा चिन्तन तर्कशास्त्र का निबद्ध रूप में स्पष्ट विकास अक्षपाद के न्यायसूत्र में उपलब्ध होता है । अक्षपाद ने अनुमान को 'अनुमान' शब्द से ही उल्लिखित किया तथा उसकी कारणसामग्री, भेदों, अवयवों और हेत्वाभासों का स्पष्ट विवेचन किया है। साथ ही अनुमान परीक्षा, वाद, जल्प, वितण्डा, छल, जाति, निग्रहस्थान जैसे अनुमान - सहायक तत्त्वों का प्रतिपादन करके अनुमान को शास्त्रार्थोपयोगी और एक स्तर तक पहुँचा दिया है। वात्स्यायन, उद्योतकर, वाचस्पति, उदयन और गणेश ने उसे विशेष परिष्कृत किया तथा व्याप्ति, पक्षधर्मता, परामर्श जैसे तदुपयोगी अभिनव तत्त्वों को विविक्त करके उनका विस्तृत एवं सूक्ष्म निरूपण किया है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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