Book Title: Jain Agamo me Varnit Dhyan Sadhikaye Author(s): Shanta Bhanavat Publisher: Z_Sajjanshreeji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012028.pdf View full book textPage 3
________________ १५२ जैन आगमों में वर्णित ध्यान-साधिकाएँ : डॉ० शान्ता भानावत नारी उच्च कोटि की शिक्षिका और उपदेशिका रही है। उसके उपदेशों में हृदय की मधुरिमा के साथ मार्मिकता भी छिपी रहती है । तपस्या में लीन बाहुबली के अभिमान को चूर करने वाली उनकी बहनें भगवान ऋषभदेव की दो पुत्रियाँ-ब्राह्मी और सुन्दरी ही थीं। उनकी देशना में अहंकार एवं अभिमान में मदोन्मत्त बने मानव को निरहंकारी बनने की प्रेरणा थी । उनका स्वर था वीरा म्हारा ! गज थकी नीचे उतरो, गज चढ्या केवली न होसी रे । बहनों के वचन सुन बाहुबली बाहर से भीतर की ओर मुड़े । घोर तपस्वी बाहुबली की अन्तश्चेतना स्फुटित हुई, अहंकार चूर-चूर हो गया । लघु बन्धुओं को वन्दना के लिए उनके चरण भूमि से उठे । बस तभी केवली बाहुबली की जय से दिग-दिगन्त गूंज उठा। शिक्षा जगत् में ब्राह्मी और सुन्दरी का नाम स्वर्ण-कलश की भाँति जाज्वल्यमान है । 'ब्राझी लिपि' ब्राह्मी की अलौकिक प्रतिभा का परिचायक है तो अंकविद्या का आदिस्रोत सुन्दरी द्वारा प्रवाहित किया गया। श्रमण संस्कृति ने नारी जाति के आध्यात्मिक उत्कर्ष को ही महत्व दिया हो ऐसी बात नहीं है । किन्तु उसके साहस, उदारता एवं बलिदान को भी महत्व दिया है। राजीमती, मृगावती, धारिणी, चेलणा आदि नारियों की ऐसी परम्परा मिलती है जो अपने आदर्शों की रक्षा के लिए नारीसुलभ सुकुमारता को छोड़कर कठोर साहस, बौद्धिक कौशल एवं आत्मउत्सर्ग के मार्ग पर चल पड़ी। राजीमती से विवाह करने के लिए बरात सजाकर आने वाले नेमिनाथ जब बाड़े में बंधे पशुओं का करुण-क्रन्दन सुनकर मुंह मोड़ लेते हैं, दूल्हे का वेश त्यागकर साधु वेश पहनकर गिरनार की ओर चल पड़ते हैं, तब परिणयोत्सुक राजुल विरह-विदग्ध होकर विभ्रान्त नहीं बनती, प्रत्युत विवेकपूर्वक अपना गन्तव्य निश्चित कर संयममार्ग पर अग्रसर हो जाती है। जब नेमिनाथ के छोटे भाई मुनि रथनेमि उस पर आसक्त होकर संयमपथ से विचलित होते हैं तो वह सती साध्वी राजीमती उन्हें उद्बोधन देकर पुनः चारित्रधर्म में स्थिर करती हैं। महासती धारिणी आर्या चन्दनबाला की माता थीं। जिन्होंने अपने शील धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। धन्य है वह माँ ! सचमुच नारी अबला नहीं, सबला है । मृगी-सी भोली नहीं, सिंहनी-सी प्रचंड भी है। आर्या चन्दनबाला की कहानी भारतीय नारी की कष्टसहिष्णुता, परदुःखकातरता, समभाव, शासन कौशल की कहानी है। राजसी वैभव में जन्मी, पली-पुसी गजकुमारी एक दिन रथी द्वारा गुलामों के बाजार में वेश्या के हाथों बेची गई। माँ की तरह ही 'प्राण जाय पर शील न जाय' की दृढ़प्रतिज्ञ चन्दना जब वेश्या के इरादे को पुरा न कर सकी तो एक सदाचारी सेठ को बेची गई। पितृछाया में भी दासी की तरह यंत्रणा । ईर्ष्यालु सेठानी ने उसके लम्बे-लम्बे बाल कैंची से काट दिये । हाथों में हथकड़ियाँ, पैरों में बेडियाँ पहनाकर भूमिगृह में डाल दिया घोर अपराधी की तरह । तीन दिन की भूखी-प्यासी बाला को खाने के लिए दिये गये उड़द के बाकले। संकटों और यंत्रणाओं की इस घड़ी में चन्दना के धैर्य एवं साहस का प्रकाश क्षीण नहीं हुआ। उसकी शान्ति एवं समता का सरोवर नहीं सूखा । वह अपने हृदय में निरन्तर एक दिव्य-भावना संजोए अज्ञानग्रस्त आत्माओं के मंगल-कल्याण की कामना करती रही। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5