Book Title: Jain Agamo me Samayik
Author(s): Hastimal Acharya
Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf

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Page 2
________________ • २८० • व्यक्तित्व एवं कृतित्व (३) 'समे अयनं समायः' समभाव में पहुँचने या जाने को भी सामायिक कहते हैं। (४) 'सामे अयनं सामस्य वा प्रायः-सामायः' अर्थात् मैत्री भाव में जाना, या मैत्री-भाव मिलाने का कार्य । (५) सम-को सम्यग् अर्थ में मानकर भी समाय* बनाया जाता है । इसका अर्थ है-सम्यग् ज्ञानादि रत्नत्रय के प्राय का साधन । (६) 'समये भवं' अथवा 'समये अयन' इस व्युत्पत्ति से सामायिक रूप होता है । यहां समय का अर्थ काल की तरह सम्यग आचार या आत्म-स्वरूप है । मर्यादानुसार चलना अथवा आत्म-स्वभाव में जाना भी सामायिक है। सामायिक का दूसरा नाम 'सावद्य योगविरति' है । रागद्वेष रहित दशा में साधक हिंसा, झूठ, चोर, कुशील और परिग्रह आदि सम्पूर्ण पापों का त्याग करता है, उसकी प्रतिज्ञा होती है. 'सावज्जं जोगं पच्चखामि'–सावध योग का त्याग। सामायिक के विभिन्न प्रकार : साधक की दृष्टि से सामायिक के दो एवं तीन प्रकार भी किये गये हैं। 'स्थानाँग सूत्र' में आगार सामायिक और अनगार सामायिक दो भेद हैं । प्राचार्यों ने तीन एवं चार प्रकार भी बतलाये हैं, जैसे कहा है 'सामाइयं च तिविहं; सम्मत्त सुअंतहा चरित्तं च । दुविहं चैव चरित्तं, आगार मणगारियं चेव' प्रा० ७६५ ।। सम्यक्त्व सामायिक, श्रुत सामायिक और चारित्र सामायिक-ये सामायिक के तीन प्रकार हैं। प्रागार, अनगार भेद से चारित्र सामायिक के दो भेद होते हैं। सम्यक्त्त्व की स्थिति में साधक वस्तु-स्वरूप का ज्ञाता होने से राग, द्वेष में नहीं उलझता । भरत महाराज ने अपने अपवाद करने वालों को भी तेल का कटोरा देकर शिक्षित किया । पर उस पर राग-द्वेष की परिणति नहीं आने दी । यह सम्यक्त्व सामायिक है । निसर्ग और उपदेश से प्राप्त होने की अपेक्षा इसके दो भेद हैं । उपशम, सासादन, वेदक, क्षयोपशम और क्षायिक भेद से पाँच, निसर्ग आदि रुचि भेद से दस, क्षायिक.औपशमिक क्षाय-पशमिक भेद से तीन तथा कारक, रोचकर और दीपक भेद से भी सामायिक के तीन प्रकार *समानां ज्ञानादीनामायो लाभः समाय सए व सामायिकम् -स्थानांगसूत्र । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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