Book Title: Jain Agamo me Nari Author(s): Vijay Kumar Sharma Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf View full book textPage 7
________________ उपर्युक्त आगमकालीन वैवाहिक परम्परा, विधि-विधान, आयोजन, आवश्यकता, पवित्रता आदि विचार हिन्दू शास्त्रों से मिलते-जुलते हैं । कुछ छोटे-मोटे सामान्य विभेद के साथ पूर्णतया हिन्दू विवाह-प्रणाली ही आगम विवाह, प्रणाली मानी जा सकती है। गणिका :-आगमकालीन भारतीय नारी का सच्चा चित्र उपस्थित करने हेतु नारी जाति की एक प्रमुख संस्था गणिका के -सम्बन्ध में संक्षिप्त विवरण भी इष्ट प्रतीत होता है । गणिका भारतीय समाज की एक अत्यन्त प्राचीन संस्था है। ऋग्वेद में गणिका के लिए नृतु शब्द का प्रयोग मिलता है।' चाजसेनीय संहिता में वेश्यावृत्ति को एक पेशा स्वीकार किया गया है। स्मृतियां इस पेशे को सम्मानजनक नहीं बताती हैं।' बौद्ध साहित्य में गणिकाओं को सम्माननीय स्थान दिया गया है। कौटिल्य अर्थशास्त्र में गणिकाओं का समाज में सम्मानजनक स्थान का उल्लेख मिलता है। राजाओं द्वारा उन्हें छत्र, चमर, सुवर्ण घट आदि प्रदान कर सम्मान देने की बात कही गई है। वात्स्यायन के कामसूत्र में वेश्याओं का विशद वर्णन है। वहां वेश्याओं को कुंभदासी, परिचारिका, कुलटा, स्वैरिणी, नटी, शिल्पकारिका, प्रकाश विनष्टा, रूपाजीवा एवं गणिका--इन नौ भागों में विभक्त किया गया है। इन नौ विभाजनों में सर्वश्रेष्ठ राजा द्वारा पुरस्कृत को कहा गया है। उदान की टीका परमत्थदीपनी में इसे नगरशोभिणी कहा गया है । गणिका तत्कालीन समाज का एक सदस्य मानी जाती थी। आर्थिक एवं राजनैतिक गणों से सम्बन्धित व्यक्तियों की सम्पत्ति मानी जाती थी।' मनुस्मृति में गण और गणिका द्वारा दिया हुआ भोजन ब्राह्मणों के लिए अस्वीकार्य बताया गया है। मूलसर्वास्तिवादियों के विनयवस्तु में आम्रपालि को वैशाली के गण द्वारा भोग्य कहा गया है। आचार्य हेमचन्द्र के भव्यानुशासन-विवेक में गणिका की परिभाषा करते हुए कहा गया है-"कलाप्रागल्भ्यधौाभ्यां गणयति कलयति गणिका ।"" अतः ऐसा प्रतीत होता है कि सामान्य लोगों के द्वारा गणिका आदरणीय मानी जाती थी। वात्स्यायन के अनुसार वह सुशिक्षित और सुसंस्कृत तथा विविध कलाओं में पारंगत होती थी। गणिका को गणिकाओं के आचार-व्यवहार की शिक्षादीक्षा दी जाती थी। गणिकाओं के अभिषेक का वर्णन भी मिलता है। प्रधान गणिका का बड़े ही धूम-धाम से अभिषेक किया जाता था। बृहत्कल्पभाष्य में किसी रूपवती को वशीकरण आदि द्वारा वश में करके उसे गणिका के पद पर नियुक्त करने का उल्लेख मिलता है। नगरशोभिणी का सम्बन्ध किसी खास संभ्रान्त पुरुष से होता था। जनसाधारण की उपभोग्य वस्तु वह नहीं होती थी। प्रेमी पुरुष के 'परदेश-गमन पर वह कुलवधू की तरह विरहिणी व्रत का पालन करती थी। मृच्छकटिक की वसंतसेना, कुट्टिनीमत की हारलता, कथासरित्सागर की कुमुदिका आदि इस प्रसंग में उल्लेखनीय हैं। साध्वी संघ :-श्रमण महावीर के चतुर्विध संघ में साध्वी संघ का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण था। इनका जीवन भिक्षावृत्ति से चलता था। इन्हें एक अनुशासित एवं नियंत्रित जीवन व्यतीत करना होता था। संघ के विधान के अनुसार ये साध्वियाँ भिक्षुओं द्वारा आरक्षित होती थीं। कुत्सित आचरणवाले पुरुषों से इनकी रक्षा के लिये इनके निवास स्थान में किवाड़ का प्रबन्ध होता था। कपाट के अभाव में भिक्षु संवरी का कार्य करते थे। किसी भी कारण से साध्वी यदि गर्भवती हो जातो तो उसे संघ से निष्कासित नहीं किया जाता था, अपितु उस पूरुष का पता कर राजा द्वारा दण्ड दिलवाया जाता था जिससे भविष्य में इस प्रकार के दुराचरण की पुनरावृत्ति न हो। परन्तु इसके बावजूद भी साध्वियों के गर्भवती होने की चर्चा आगम ग्रंथों में प्राप्त है। बौद्ध साहित्य के जातक कथा के मातंग जातक में उल्लेख है कि किसी भातंग ने अपने अंगूठे से अपनी पत्नी की नाभि का स्पर्श किया, और वह गर्भवती हो गई। इसी तरह धम्मपद अट्ठकथा में उप्पलवण्णा के साथ श्रावस्ती के अंधकवन में किसी ब्रह्मचारी के द्वारा बलात्कार करने का जिक्र है।" १. वैदिक इण्डेक्स-१, पृ० ४५७ २. याज्ञवल्क्यस्मृति १, पृ० ४५७ ३. पेन्जर कथासरित्सागर ४. चकलदार-स्टडीज इन वात्स्यायन कामसूत्र-१६९ ५. मनुस्मृति-४-२०६ ६. विनय वस्तु–१७ ७. काव्यानुशासन (हेमचन्द्र) पृ० ४१८ ८. चकलदार-स्टडीज इन वात्स्यायन कामसूत्र पृ० १६८ ६. आवश्यक चूर्णी-२९७ १०. मातंग जातक, पृ० ५८६ ११. धम्मपद अट्ठकथा २, पृ. ४६-५२ जैन इतिहास, कला और संस्कृति १६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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