Book Title: Jagna hai to abhi Jago
Author(s): Rajimatishreeji
Publisher: Z_Mohanlal_Banthiya_Smruti_Granth_012059.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 2
________________ स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ किसान को दण्ड दिया कि तुम्हें दो में से एक का चुनाव करना है। सौ कोड़े खाना या सौ प्याज खाना? तुरन्त चुनाव करते हुए उसने कहा - मैं मार नहीं खा सकता, सौ प्याज खाना स्वीकार करता हूं। एक किलो के चार प्याज बेचारे ने मुश्किल से दस खाये कि नहीं, सारा शरीर लाल और पसीने से गीला हो गया। घबरा कर उसने दूसरा विकल्प स्वीकार किया। बीस कोड़े खाने से पहले ही विचलित हो गया। मैं अब पुनः आदेश चाहता हूं प्याज खाने का बन्धुवर ! कोड़े नहीं खा सकता। इस प्रकार करते-करते उसने सौ प्याज भी खा लिये और सौ कोड़े भी। संसार में ऐसी अनेक चेतनाएँ हैं जिन्हे अपने न जागने का ज्ञान भी नहीं है और जागने के विधि-विधान भी ज्ञात नहीं है, क्योंकि आम आदमी वैसा ही सोचता है, करता है जैसा उसके अड़ोस-पड़ोस के लोग करते हैं। जागे हुये लोगों का समाज मुहल्ला होता नहीं। अगर ऐसा होता तो दो प्रकार के लोगों की भीड़ बराबर होती है। जागना शुभ भी होता है और अशुभ भी होता है। एक धन के प्रति जागता है । एक धन के प्रति जागता है और एक ज्ञान के प्रति। एक राग के प्रति जागता है और एक वीतराग के प्रति। एक स्व के प्रति जागता है और एक पर के प्रति। जिसे जागने से स्वयं में पुलकन पैदा होती है वह जागना सहीं है। वर्तमान युग का आदमी जिसके प्रति जागना चाहिए उसके प्रति पूर्णतः सोया हुआ है। इसी का परिणाम है धरती पर सोये हुये लोगों के द्वारा सारे युद्ध लड़े गये। दुनिया में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो जागने की घोषणा भी करते हैं परन्तु रास्ता जागरण से विपरीत है। जो औरों को जगाने की धुन लिए चलते हैं, वे न स्वयं को जगा पाते हैं और न औरों को। कोई जगाने आया तो साफ इन्कार हो जाते हैं। अतः हमें उस रास्ते पर चलना है जो स्वयं की मंजिल से मिलता है। सेठजी को प्रतिदिन चार बजे उठाने आया तो सेठ ने ललकारते हुये कहा - किसने बुलाया था ? बोल, अभी क्यों आया ? नौकर डरकर वापिस लौट गया। दूसरे दिन फिर वही आदेश। ठीक चार बजे पलंग के पास आकर खड़ा हो गया। चद्दर को खींचते हुए कहा, समय हो चुका है। ट्रेन पकड़नी है तो उठ जाइये। आध घण्टे की लड़ाई के बाद उठा पर नौकर के जाते ही वापिस सो गया। इस प्रकार जब चौथे दिन आया तब लात मार कर भगा दिया। सेठ कभी सही समय पर नहीं जाग पाये, इसलिए सफलतायें उसे पीछे छोड़ती चली गई। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3