Book Title: Jagna hai to abhi Jago Author(s): Rajimatishreeji Publisher: Z_Mohanlal_Banthiya_Smruti_Granth_012059.pdf Catalog link: https://jainqq.org/explore/210520/1 JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLYPage #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दर्शन दिग्दर्शन जागना है तो अभी जागो - साध्वी राजीमती जिसे जागना है वह जागेगा, उसकी नियति है और जिसे सोना है वह सोयेगा, क्योंकि सोना भी उसकी नियति है। सोने वाले के दरवाजे पर रोज सवेरे जगाने कौन आयेगा? यदि कोई आ भी गया तो उसे सुनने वाल कौन होगा? संसार जागने और जगाने वालो को सदा ललकारता है और व्यक्ति वापिस लौठाता रहा है। आज भी ऐसा ही होता है। मां रोज सबेरे जगाती है, बेटा जागकर भी सो जाता है। कल उस समय नहीं जगाने की बात कहता है। किन्तु क्रम वही चल रहा है। मां जगाती है, बेटा सोता है। कभी-कभी सोने वाला जगाने वालों पर नाराजगी भी व्यक्त करता है, क्योंकि सोने में जो सुख है वह जागने में कहां? भले ही यह सुख फलदायी हो या न हो। संत रोज-रोज जगा रहे हैं। भक्त सोये जा रहे हैं। जगाने की व्यवस्था के बावजूद कोई जागने को तैयार नहीं है। जिस चेतना ने कल सुबह जागने का सपना देखा, वही चेतना शाम को उसके विपरीत विरोध में खड़ी हो जाती है। सोये रहना किसे नहीं भाता। सोने में एक सुख है, तृप्ति है, क्योंकि नींद में सारे काम स्वयं हो जाते हैं। नींद में सारे काम स्वयं हो जाते हैं। नींद में न थकान का अनुभव होता है और न वेदना का, यही वह स्थिति है। चोर चोरी कर रहा है और मालिक सो रहा है। एक दौड़ते हुए व्यक्ति से लोगों ने पूछा- भैया ! तुम कहां जा रहे हो? वह कहता है इसका उत्तर आप मुझसे क्यों पूछ रहे हैं ? मेरे आगे एक मेरा साथी दौड़ रहा है अच्छा होता आप उससे पूछकर जानकारी कर लेते। ऐसी यात्रायें करने वाले क्या कम लोग हैं इस संसारी में ? हमें जानकारियां तो हैं किन्तु मौलिक और प्रामाणिक यात्राओं की नहीं है, फलतः जीवन यात्रा अपूर्ण रह जाती है। आश्चर्य तो यह है कि जो लोग जागने के लिए निकल गये हैं, यदि वे भी गये, संकल्प भूल गये तो दोहरी भूल होगी। 2010_03 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ किसान को दण्ड दिया कि तुम्हें दो में से एक का चुनाव करना है। सौ कोड़े खाना या सौ प्याज खाना? तुरन्त चुनाव करते हुए उसने कहा - मैं मार नहीं खा सकता, सौ प्याज खाना स्वीकार करता हूं। एक किलो के चार प्याज बेचारे ने मुश्किल से दस खाये कि नहीं, सारा शरीर लाल और पसीने से गीला हो गया। घबरा कर उसने दूसरा विकल्प स्वीकार किया। बीस कोड़े खाने से पहले ही विचलित हो गया। मैं अब पुनः आदेश चाहता हूं प्याज खाने का बन्धुवर ! कोड़े नहीं खा सकता। इस प्रकार करते-करते उसने सौ प्याज भी खा लिये और सौ कोड़े भी। संसार में ऐसी अनेक चेतनाएँ हैं जिन्हे अपने न जागने का ज्ञान भी नहीं है और जागने के विधि-विधान भी ज्ञात नहीं है, क्योंकि आम आदमी वैसा ही सोचता है, करता है जैसा उसके अड़ोस-पड़ोस के लोग करते हैं। जागे हुये लोगों का समाज मुहल्ला होता नहीं। अगर ऐसा होता तो दो प्रकार के लोगों की भीड़ बराबर होती है। जागना शुभ भी होता है और अशुभ भी होता है। एक धन के प्रति जागता है । एक धन के प्रति जागता है और एक ज्ञान के प्रति। एक राग के प्रति जागता है और एक वीतराग के प्रति। एक स्व के प्रति जागता है और एक पर के प्रति। जिसे जागने से स्वयं में पुलकन पैदा होती है वह जागना सहीं है। वर्तमान युग का आदमी जिसके प्रति जागना चाहिए उसके प्रति पूर्णतः सोया हुआ है। इसी का परिणाम है धरती पर सोये हुये लोगों के द्वारा सारे युद्ध लड़े गये। दुनिया में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो जागने की घोषणा भी करते हैं परन्तु रास्ता जागरण से विपरीत है। जो औरों को जगाने की धुन लिए चलते हैं, वे न स्वयं को जगा पाते हैं और न औरों को। कोई जगाने आया तो साफ इन्कार हो जाते हैं। अतः हमें उस रास्ते पर चलना है जो स्वयं की मंजिल से मिलता है। सेठजी को प्रतिदिन चार बजे उठाने आया तो सेठ ने ललकारते हुये कहा - किसने बुलाया था ? बोल, अभी क्यों आया ? नौकर डरकर वापिस लौट गया। दूसरे दिन फिर वही आदेश। ठीक चार बजे पलंग के पास आकर खड़ा हो गया। चद्दर को खींचते हुए कहा, समय हो चुका है। ट्रेन पकड़नी है तो उठ जाइये। आध घण्टे की लड़ाई के बाद उठा पर नौकर के जाते ही वापिस सो गया। इस प्रकार जब चौथे दिन आया तब लात मार कर भगा दिया। सेठ कभी सही समय पर नहीं जाग पाये, इसलिए सफलतायें उसे पीछे छोड़ती चली गई। 2010_03 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दर्शन दिग्दर्शन जागना जरूरी है अपने जीवन के प्रति / बिना जागे विवेक जागे जीवन की उपयोगिता सिद्ध नहीं होगी। जागरण बदलाव का दूसरा नाम है। दीया जब तक जागता है अन्धेरा पास नहीं फटकता। जागृत जीवन भी बुराइयों से नहीं घिरता। सपनों के भ्रमजाल में नहीं भटकता। प्रमाद, मोह और अज्ञान में डूबकर अपना अहित नहीं करता। जागने का मतलब है अपने घर में लौट आना। ऐसे घर में जहां सुख हो, शांति हो, समाधि हो। जागृत व्यक्ति प्रतिपल सोचता है - मैंने क्या किया ? मेरे लिए अब क्या करणीय शेष है ? ऐसा कौन सा कार्य है जिसे मैं नहीं कर सकता? इन प्रश्नों के समाधान की प्यास के उभरने का नाम ही जागना है। जागने के बाद अपने चिन्तन को, विचारों को, संभाषण को और कर्म से जीता विधायक जीवन शैली सीखें। प्रतिदिन एक विचारडायरी डालें जिसके मुख्य बिन्दु हो सकते हैं - / प्रतिपल मन को रचनात्मक चिन्तन से जोड़े रखें। / आज का काम आज ही सम्पन्न करें। / कल जो शेष रह गया अथवा कल जो करना है उसकी चिन्ता न करें। / भोजन करते समय मन तनावमुक्त रखें। / उलझनों को लम्बायें नहीं, शीघ्र समाधान खोजें / / हर समय मेरुदण्ड सीधा रखें / / प्रतिदिन समय मौन, ध्यान एवं स्वाध्याय में बिताएं। | किसी को अप्रिय लगे ऐसा कोई कार्य न करें। / रात्रि में में सोते वक्त आत्मावलोकन अवश्य करें। / भगवान से जब पूछा गया कि सोना अच्छा या जागना ? तब भगवान ने उत्तर दिया - ऐसे व्यक्तियों का जागना अच्छा है जो जागकर धर्म करते हैं पर ऐसे व्यक्तियों का सोया रहना ही अच्छा है जो जागकर अठारह पापों का सेवन करते रहते हैं। हम जागें अपने अज्ञान से, प्रमाद से, अठारह पाप की हिंसा से। अपने लक्ष्य के प्रति सावधान बनें। करणीय अकरणीय के प्रति विवेक जगाएं। जो जागता है वह प्रकाश के सिवाय कुछ नहीं देखता और प्रकाश जीवन का दूसरा नाम है। इसलिए कहा गया - समय को जानो, क्योंकि जो समय को जानता है यानि आत्मा को जानता है वह सबको जान लेता है। 'जे एगं जाणइ ते सव्वं जाणइ' बिना प्रतीक्षा किये समय को जानने की यात्रा शुरू करें। यही क्षण जागने का है | ___ 2010_03