Book Title: Itihas Darshan Sanskruti Samrakshan aur Acharya Hastimalj Author(s): Prem Suman Jain Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf View full book textPage 4
________________ प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. ग्रन्थमाला के चतुर्थ भाग में प्रस्तुत किया गया है । आचार्य श्री की प्रेरणा और मार्गदर्शन में इस भाग का लेखन श्री गजसिंह राठौड़ ने किया है । जैन धर्मं और इतिहास के मर्मज्ञ लेखक ने इस भाग को बड़े श्रमपूर्वक लिखा है और उपयोगी सामग्री प्रस्तुत की है । इस भाग में सामान्य श्रुतधर जैन आचार्यों का प्रामाणिक विवरण उपलब्ध है । जिनचन्द्रसूरि, अभयदेवसूरि, आचार्य हेमचन्द्र, जिनप्रभसूरि आदि अनेक प्रभावक आचार्यों के योगदान की इसमें चर्चा है । किन्तु सम्भवतः विस्तार भय से दिगम्बर जैनाचार्यों का उल्लेख नहीं है । यह खण्ड श्वे० परम्परा के प्रमुख जैन गच्छों और संघों का इतिहास प्रस्तुत करता है । प्रसंगवश मुगल शासकों, प्रमुख जैन शासकों और श्रावकों का विवरण भी इसमें दिया गया है । मध्ययुगीन भारतीय इतिहास के लिए इस खण्ड की सामग्री बहुत उपयोगी है । यह युग धार्मिक क्रान्तियों का युग था। जैन धर्म और संघ के अनुयायियों में भी उस समय पारस्परिक प्रतिस्पर्धा एवं उथल-पुथल थी । इतिहास लेखक इसके प्रभाव से बच नहीं सकता । अतः इस खण्ड में वही सामग्री प्रस्तुत की जा सकी है, जिससे जैन धर्म के इतिहास की कड़ियाँ जुड़ सकें और उसके सिद्धान्त / स्वरूप में कोई ब्यवधान न पड़े । ग्रन्थ के आकार की, समय की भी सीमा होती है अतः बहुत कुछ जैन इतिहास के वे तथ्य इसमें रह भी गये हैं, जिनसे जैन परम्परा की कई शाखाएँ - प्रशाखाएँ पल्लवति - पुष्पित हुई हैं । " जैन धर्म का इतिहास" विभिन्न आयामों वाला है। तीर्थंकरों, महापुरुषों, प्रभावक श्रावक-श्राविकाओं, राजपुरुषों, दार्शनिकों, साहित्यकारों, संघोंगच्छों, आचार्यों आदि को दृष्टि में रखकर इतिहास लिखा जा सकता है । यह सुनियोजित एवं विद्वानों के समूह के अथक श्रम की अपेक्षा रखता है । पूज्य आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज सा. ने "जैन धर्म का मौलिक इतिहास " के चार भागों का निर्माण एवं प्रकाशन कराकर एक ऐतिहासिक कार्य किया है । तीर्थंकरों एवं उनके शिष्यों / पट्टधरों को आधार बनाकर यह इतिहास लिखा गया है । प्रसंगवश इसमें सम्पूर्ण जैन संस्कृति का संरक्षण हो गया है । आचार्य श्री ने समाज को बे इतिहास चक्षु प्रदान कर दिये हैं जो और गहरे गोते लगाकर जैन धर्म के इतिहास को पूर्ण और विविध आयाम वाला बना सकते हैं । जैन धर्म के इतिहास का अध्ययन अनुसंधान गतिशील हो, इसके लिए निम्नांकित आधुनिक ग्रन्थ उपयोगी हो सकते हैं : १. जैन परम्परानो इतिहास, भाग १ - २ ( त्रिपुटी ) २. जैन शिलालेख संग्रह भाग १, २, ३, ४, बम्बई • १२५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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