Book Title: Islam Dharm me Karm ka Swarup
Author(s): Nizamuddin
Publisher: Z_Jinvani_Karmsiddhant_Visheshank_003842.pdf

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Page 5
________________ इस्लाम धर्म में कर्म का स्वरूप ] [ २१३ (११) किसी ऐसी वस्तु का अनुकरण मत करो जिसका तुम्हें ज्ञान न हो । निःसंदेह आँख, नाक, कान, हाथ, दिल-सब की पूछ-गछ होनी है।। (१२) मजदूर की मजदूरी उसका श्रम सूखने से पहले दे दो। (१३) अपने नौकर के साथ समानता का व्यवहार करो; जो स्वयं खामो वही उसे खिलायो, जैसा स्वयं पहनो वैसा उसे भी पहनाओ। (१४) नाप कर दो तो पूरा भर कर दो, तोल कर दो तो पूरा, ठीक तराजू से तोल कर दो। (१५) अमानत में खियानत-बेईमानी मत करो। कुरान में कहा गया है मन अमिला सालिहन मिन ज़िकरिन अव उन्सा व हुवा मुमिनुन फ़ला नुहयीयन्नाहू हयातन तय्यिब।। वला नजज़ियन्नाहुम अजराहुम बिअहसनि माकानू यसमालून ।' ___ अर्थात् व्यक्ति जो नेक अमल करेगा चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, बशर्ते कि हो वह मोमिन (ईमान, विश्वास रखने वाला) उसे हम संसार में पवित्र जीवन व्यतीत करायेंगे और आखिरत में-परलोक में ऐसे लोगों को उनके उत्तम कर्मों के अनुसार प्रत्युपकार या प्रतिफल प्रदान किया जायेगा। 'सूरे कहफ़' में अंकित है-"इन्नल्लजीना आमनू व अमिलुस्सालिहाति इन्ना ला नुज़ीउ अजरामन अहसना अमाला"-जो ईमान लायें और नेक काम करें तो निःसंदेह हम सत्कर्म करने वालों के फल नष्ट नहीं किया करते। एक सच्चा मुसलमान यह आस्था रखता है कि मनुष्य को मुक्ति प्राप्त करने के लिए अल्लाह के निर्देशन में कर्म करना चाहिए; मुक्ति की प्राप्ति के लिए मनुष्य को आस्था के साथ कर्मशील रहना होगा। यह आस्था और कर्म दोनों का संयोग आवश्यक है । जीवन को आस्थामय बनाना होगा, बिना आस्था के कर्म और बिना कर्म के आस्था बेकार है। केवल कर्म, केवल आस्था का प्रश्रय लेकर मुक्ति प्राप्त नहीं की जा सकती । इस्लाम में अन्धानुकरण को पसंद नहीं किया गया। ईमान के पाँच तत्त्व हैं-(१) अल्लाह (२) पैग़म्बरों की परम्परा (३) धर्म ग्रन्थ (कुरआन, बाइबिल आदि) (४) देवदूत (५) आखिरत या परलोक । इन पर विश्वास, आस्था रखने पर ही एक व्यक्ति मुसलमान माना जा सकता है। १-नहल ६७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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