Book Title: Int Jain Sangh NJ 2000 04 Mahavir Jayanti
Author(s): Int Jain Sangh NJ
Publisher: USA International Jain Sangh IJS

Previous | Next

Page 31
________________ Jain Education International रहे अडौल अकम्प निरन्तर यह मन दृढ़तर बन जावे । इष्ट वियोग अनिष्ट योग में, सहन शीलता दिखलावे ।। १६ ।। सुखी रहें सब जीव जगत के कोई कभी न घबरावे । वैर भाव अभिमान छोड़ जग, नित्य नये मंगल गावे ।। १७ ।। घर घर चर्चा रहे धर्म की, दुष्कृत दुष्कर हो जावें । ज्ञान चरित उन्नत कर अपना, मनुज जन्म फल सब पावें ।। १८ ।। ईत भीत व्यापै नहीं जग में, वृष्टि समय पर हुआ करे । धर्म निष्ठ होकर राजा भी, न्याय प्रजा का किया करे ।। १६ ।। रोग भरी दुर्भिक्ष न फैले, प्रजा शान्ति से जिया करे । परम अहिंसा धर्म जगत में, फैल सर्व हित किया करे ।। २० ।। फैले प्रेम परस्पर जग में, मोह दूर पर रहा करे । अप्रिय कटुक कठोर शब्द नहीं, कोई मुख से कहा करे ।। २१ ।। बनकर सब 'युगवीर हृदय से देशोन्नतिरत रहा करे । वस्तु स्वरूप विचार खुशी से, सब दुख संकट सहा करे ।। २२ ।। 19 For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44