Book Title: In Search of the Original Ardhamagadhi English Translation
Author(s): K R Chandra, N M Kansara, Nagin J Shah, Ramniklal M Shah
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 133
________________ REVIEWS AND OPINIONS ON ACARANGA As is shown by the many scholars' acknowledgements in your book they (Prakrit Scholars) fully recognize your point (Alsdorf once spoke to me about it with regard to the Thesis of Dr. Oetjens, one of his pupils) and appreciate your present work on Ayāra. Ch.1 as that of a märga-darsaka. In my comment which I sent you on May 29th, however, I hinted already at the practical consequences. This work must be done principally in India where most of the manuscripts are. Who will do the job ? Prof. Dr. W. B. Bollee Dec. 9th 1998 Bamberg, Germany प्राकृत भाषा के प्रसिद्ध विद्वान् डॉ. के. आर. चन्द्र प्राचीन अर्धमागधी की शोध एवं पाठ-निर्धारण के कार्य में सन्नद्ध है । आचारांग-सूत्र के प्रथम श्रुत-स्कन्ध के प्रथम अध्ययन का भाषा की दृष्टि से पुनः सम्पादन इसी प्रयत्न का द्योतक है । उन्होंने आचारांग के अद्यावधि प्रकाशित प्रमुख संस्करणों एवं प्राचीन हस्तप्रतों के आधार पर आचारांग के अर्धमागधी रूपों को सुनिश्चित कर आचारांग का यह नया संस्करण तैयार किया हैं । अर्धमागधी आगमों के प्रकाशित संस्करणों में पाठ-भेद की समस्या सर्वविदित है। अर्धमागधी भाषा पर विशेषतः महाराष्ट्री प्राकृत का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है । डॉ. चन्द्र ने जब यह देखा कि आचारांग-सूत्र प्राचीन आगम है एवं उसके पाठों में भेद प्राप्त होता है तो उन्होंने इसका समाधान ढूँढने का प्रयास किया । उसी का परिणाम प्रस्तुत ग्रन्थ है । इसमें उन्होंने आचारांग के प्रथम श्रुत-स्कन्ध के प्रथम अध्ययन का ही अर्धमागधी के उपयुक्त रूपों की दृष्टि से सम्पादन किया हैं। इसके लिए उन्होंने महावीर जैन विद्यालय, मुम्बई, जैन विश्वभारती लाडनूं, आगमोदय समिति, शुब्रिग आदि के संस्करणों, जैन ज्ञान भण्डार, खम्भात एवं जेसलमेर की ताड़पत्रीय प्रतियों और विभिन्न आगमों एवं वृत्तियों का उपयोग किया हैं । किन-किन संस्करणों, हस्तप्रतियों एवं अन्य आगमों में एक ही शब्द के कौन-कौन से रूप उपलब्ध होते हैं, इसका तुलनात्मक विवरण बड़े परिश्रम से तैयार किया गया है । तुलनात्मक सारिणी में उत्तराध्ययन. इसिभासियाई आदि अन्य आगमों में प्राप्त शब्दों को भी रखा गया है। तुलनात्मक विवरण से अर्धमागधी के प्राचीन रूपों का निर्धारण करने में पर्याप्त सरलता हो गई है। पाठ निर्धारित करते हुए कुछ पाठ-भेद भी दर्शाये गये हैं । इस __ 116 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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