Book Title: Hindi Ramayan Manas Author(s): Lakshmi Narayan Dubey Publisher: Z_Jayantsensuri_Abhinandan_Granth_012046.pdf View full book textPage 5
________________ कहें जिण-सासणे केम थिय कइ राघव-केरी // करन चहउं रघुपति गुनगाहा / लघुमति मोरि चरित अवगाहा / / वह आगे व्यंग्य करता है डूब न एकउ अंग उपाऊ | मन मति रंक मनोरथ राऊ / / जइ राम हों तिहुअणु उवरें माइ / तो रावणु कहि तिय लेवि मति अति नीच ऊंचि रुचि आछी / चहिअ अमिख जग जुरइ न जाइ / 'मानस' में भी पार्वती शंका करती है काछी // जो नृप तनय त ब्रह्म किमि, नारि-विरह मति मोरि / छमिहहिं सज्जन मोरि ढिठाई / सुनिहहिं बालवचन मन लाई / / देखि चरित महिमा सुनत, भ्रमति बुद्धि अति मोरि // जो बालक कह तोतरि बाता / सुनहिं मुदित मन पितु अरु माता / भरद्वाज की जिज्ञासा भी इसी प्रकार है - जन हंसहहिं कूर कुटिल कुविचारी / जे पर दूषन भूषन धारी / / प्रभु सोइ राम कि अमर कोइ जाहि जगत त्रिपुरारि। सत्य धाम सर्वज्ञ तुम्ह करहु विवेक विचारि // भाव भेद रख मेव अपारा | कवित दोष गुन विविध प्रकारा / 'पउम चरिउ' में श्रेणिक की शंका के निवारण हेतु गणधर गौतम कवित विवेक एक नहिं मोरे / सत्य कहउं लिखि कागद कोरे / / राम-कथा का उद्भव इस प्रकार निरूपित करते हैं - "भविरायसकहा' की निम्न पंक्तियों में भी बड़ी समानता है - बद्धमाण मुह कुहर विणिग्गय / राम-कहा णह एह कमागय // सुणिमित्तं जा अई तासु ताम / गय पथहिणत्ति उड्डेवि साम / एह राम कह सरि सोहन्ती / गणहर देवहि दिट्ठवहन्ती / / वायंगि सुत्ति सहसहइ वाउ / पिय मेलावह कुलकुल काउ // पच्छइ हन्दमूइ-आयरिए / पुण धम्मेण गुणा लंकरिए / वामउ किलकिंचिउ लावएण / वाहिणउ अंगु नरिसिउ मएण // पुणु पहवे संसारा राएं / कित्ति हरेण अणुत्तर बाएं // दाहिणउ लोयणु फंदह सुवाहु / णं पणइ एण मग्गेण जाहु // पुणु रविषेणायरि पसाएँ / बुद्धि ए अवगाहिय कइराएं // तुलसी ने भी उसी भाव की सम्पुष्टि की है - 'मानस' में राम-कथा की यह परिपाटी निरूपित हैं - दाहिन काग सुखेत सुहावा / नकुल वरस सब काहुन पावा / संभु कीन्ह यह चरित सुहावा / बहुरि कृपा करि उमहिं सुनावा // सानुकूल वह त्रिविध बयारी / सघट सबाल पाव वर नारी / / सोइ सिव कागमुसुंडिहिं दीन्हा / राम-भगति अधिकारी चीन्हा / / लोवा फिरि-फिरि दरस दिखावा / सुरभी सम्मुख शिशुहि आवा / / तेहि सन जागवलिक पुनि पावा | तिन्ह पुनि भरद्वाज प्रति गावा // मृगमाला दाहिन दिशि आई / मंगल गन जनु दीन्ह दिखाई / / में मुनि निज गुरु सन सुनी कथा सो सूकर खेत / निष्कर्ष सूत्र: समुझी नहिं तसि बालपन तब अति रहेउ अचेत / / 'पउमचरिउ' जैन संस्कृति से ओतप्रोत राम-काव्य है / उसने स्वयंभू के आत्मनिवेदन और तुलसी के आत्मनिवेदन में 'मानस' को यत्र-तत्र प्रभावित किया है / स्वयंभू ओज के कवि काफी भावसादश्य हैं / 'पउम चरिउ' में स्वयंभू कहते हैं - थे / उनकी सबसे बड़ी देन सीता का चरित्र चित्रण है / तुलसी ने बुह-यण संयमु पहं विण्णवह / महु सरिसउ अण्ण णाहि कुमइ // समूचे भारतीय मानस को प्रभावित किया है / वे अपने कृतित्व तथा साहित्य-स्रोतों के विषय में बड़े ईमानदार थे / हिन्दी का युग वायम्भु कयाइ ण जाणि यउ / णउ विधि-सुत्त वक्खाणियउ || आते-आते उनका कोई नामलेवा नहीं रह गया था / किसी ने णा णिसुणिन पंच महाय कव्वु / णउ मरहु ण लक्खणु कुंदु सब्बु।। उनका स्तवन नहीं किया / इसका कारण था कि हिन्दी में आभारणउ वुज्झिउ पिंगल-पच्छारू / णउ भामह दंडीय लंकारू / प्रदर्शन की परिपाटी समाप्त हो गयी थी / इसके एकमेव अपवाद महाकवि गोस्वामी तुलसीदास थे जिन्होंने अपने पूर्व प्रमुख कवियों वे वे साय तो वि णउ परिह रमि / बरि रयडा वुत्तु क्षब्बु करमि // का तर्पण किया है / अन्य किसी कवि ने अपने पूर्ववर्ती कवियों सामाणमास छुड मा विहडउ / छुडु आगम-जुत्ति किंपि धडउ // का स्मरण नहीं किया / राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने 'साकेत' में कुडु होति सु हासिय वयणाई / गामेल्ल-मास परिहरणाई // रामकाव्य के गायकों तथा पुरस्कर्ताओं का सादर नामोल्लेख किया एहु सज्जण लोमहु किउ विणउ / ज अबुहु पदरिसिउ अप्पणउ // S 'पउम चरिउ' और 'रामचरित जं एवंबि रूसाइ कोवि खलु / तहो हत्युत्थल्लिड लेउ छलु / / मानस' भारतीय साहित्य की वह पिसुणे कि अब्मत्थिएण, जसु कोवि ण रूच्चइ / अनूठी, अप्रतिम तथा प्रौढ़ किं छण-इन्दु मरूगाहे, ण कंपंतु विभुच्चइ // उपलब्धियां हैं जिन्होंने रामकथा तथा रामकाव्य को युगांतर प्रदान किया तुलसी ने भी अपनी लघुता प्रदर्शित की हैनिज बुधि बल भरोस मोहि नाहीं / तातें विनय करउं सब पाहीं / / श्रीमद् जयन्तसेनसूरि अभिनन्दन ग्रंथ / विश्लेषण (28) प्रेमी आत्मजा अंगना; मित्र बंधु परिवार / जयन्तसेन सभी साथ, रह जलकमल विचार || www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use OnlyPage Navigation
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