Book Title: Hemchandracharya ni Kavya Vyutpatti Suchak Ek Vadhu Udaharan Author(s): H C Bhayani Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ [112 गोदा यत्र नटी तरंगित-तटी कल्लोल-चंचत्-पुटी दिव्यामोद-कुटी भवाब्धि-शकटी भूत-क्रिया-दुष्कुटी । आमां बार टीकारान्त शब्दोनो प्रयोग करेलो छे. ए पछी रामनी स्तुतिरूप ११ टकारान्त शब्दो वालु पद्य (३.२३) नीचे प्रमाणे छे : क्रीडा-कल्प-वटं विसर्पित-जटं विश्वांवुजन्मावटं पिष्टांडौघ-घटं धृतांघ्रि-शकटं ध्वस्त-क्षमा-संकटम् । विद्युच्चारु रुधा विधूत-कपटं सीताधरा-लंपटं भित्रारीभ-घटं विरुग्ण-शकटं वंदे गिरां दुर्घटम् ॥ 'सिद्धहेम'ना एक अपभ्रंश दोहा- अर्वाचीन रूपांतर ह. भायाणी हेमचंद्राचार्ये तेमना व्याकरणना अपभ्रंश विभागमा उदाहरण रूपे, तेमने उपलब्ध साहित्यमांथी जे दोहा आप्या छे, तेमांथी केटलाक वधतेओछे रूपांतरे उत्तरकालीन जूनी गुजराती-राजस्थानी साहित्यमां तथा मौखिक परंपराना चारणी साहित्यमा प्रचलित होवानुं जाणीतुं छे । मारा सिद्धहेम'ना अपभ्रंश विभागना अनुवादमां में एमांथी केटलांक नोंध्या छे. अहीं तेवा ज एक रसप्रद उदाहरण प्रत्ये हुं ध्यान खेचुं छु । सूत्र ४३० नीचे आपेलुं त्रीजुं उदाहरण अने तेनो अनुवाद नीचे प्रमाणे छे. सामी-पसाउ स-लज्जु पिउ, सीमा-रुधिटि वासु । पेक्खिवि बाहु-बलुल्लडा, धण मेलइ नीसासु ॥ 'मालिकनी कृपा, शरमाळ प्रियतम, सीमाडा भेगा थाय त्यां वसवाट अने प्रियतमनुं बाहुबल ए जोईने प्रिया निःश्वास मूके छे.' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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