Book Title: Hathigumpha Inscription of Kharavela and Bhabru Edict of Asoka
Author(s): Shashi Kant
Publisher: D K Print World

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Page 143
________________ Appendix II 117 कोष से गृह-रत्नों का अपहरण करके अंग और मगध का धन ले आते हैं। वापस लौटने पर दो सहस्र (मुद्रा) व्यय करके वह गोपुरों के सभी सुद्दढ़ शिखरों पर केतु लगवाते हैं और अद्भुत आश्चर्य का विषय है कि हाथी-सैन्य और नाव-सैन्य भेजकर वह पांइय राजा के घोड़े, हाथी, रत्न और माणिक्य . . . ले लेते हैं और वहाँ लाखों के मूल्य के अनेक मुक्ता, मणि और रत्नों का भी अपहरण करते हैं एवं [पांड्य जनपद के निवासियों को वश में करते हैं। तथा तेरहवें वर्ष में राजसी भक्त जिसने व्रतों का पालन किया है, जो देवी शक्ति से सम्पन्न है और जिसका पूजा में अनुराग है ऐसे उपासक श्री खारवेल द्वारा, जिनका जीव अभी देहाश्रित है, विजय मंडल में स्थित कुमारी पर्वत नामक शुभ पर्वत पर पूजा के हेतु संसार-मुक्त अरहंतों की काय-निषिद्या का उत्खनन कराया गया। राजा श्री खारवेल के आमंत्रण पर सब दिशाओं से आने वाले सुकृत और सुविहित श्रमण, ज्ञानी, तपस्वी- ऋषि और सभी संघों के नेता जिनकी संख्या ३५00 थी], सिंहपथ वाली रानी सिंधुला की निसिया के पास शिला पर पर्वत शिखर पर अरहंत की निषिद्या के समीप वराकार में एकत्र होते हैं। और [सभामण्डप के सामने] वह (अर्थात् खारवेल) वैडूर्य गर्भित चौमुखे स्तंभ की प्रतिष्ठा कराते हैं, एवं १६५वें वर्ष से व्युच्छिन्न होती हुई मुख्य ध्वनि के शान्तिदायी द्वादश अंगों का शीघ्र पाठ कराते हैं। ऐसे क्षमाशील, बुद्धिमान, भिक्षुवृत्ति और धार्मिक राजा कल्याणों (= कल्याणकारी श्रुत) से संबंधित प्रश्न करते हैं, उनका श्रवण करते हैं और उनका मनन करते हैं। [३५५वाँ वर्ष।] विशेष गुणों में कुशल, सब धर्मों को पूजने वाले, सब देवमन्दिरों का संस्कार करने वाले, अप्रतिहत चक्रवाहिनी के स्वामी, विजय-चक्र को धारण करने वाले, राज्य के रक्षक, प्रवृत्त-चक्र के स्वामी, राजवंशों और कुलों के आश्रय, महाविजयी, राजा श्री खारवेल।" __ भाबू लेख का हिन्दी रुपान्तर “मगध-राज प्रियदर्शि संघ को अभिवादन करके और उनके स्वास्थ्य एवं कुशलता की कामना करके ऐसा कहते हैं : मंते, आपको विदित है कि बुद्ध, धर्म और संघ में हमारा कितना आदर एवं श्रद्धा है। भंते, भगवान बुद्ध ने जो कुछ कहा है वह सभी सुभाषित है परन्तु भंते, सद्धर्म के चिरस्थायी होने के उद्देश्य से हम वह बताते हैं जो कुछ हमने (उनके वचनों में उत्कृष्ट) देखा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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