Book Title: Hath yoga Ek Vyashti Samashti Vishleshan Author(s): Shyamsundar Nigam Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf View full book textPage 5
________________ पंचम खण्ड / १७० , अर्चनार्चम प्राज्ञा चक्र आ अभिनन्दित होती, शरीर के अणु-अणु को अपनी दिव्यचेतना के स्फुरण से रूपान्तरित करती ब्रह्मनाड़ी की पालकी में बैठ चित्रिनी का झिलमिलाता चूंघट डाल, वज्रिनी के उत्तरीय को धारण कर सुषुम्ना के रास्ते चक्रों के बन्दनवारों के मध्य होती हुई अपने संरक्षक देवी देवताओं की छत्रछाया में बीज-मंत्रों की स्तुतियों के बीच, अपनी अक्षरात्रों के लोक-गीतों से उल्लसित हो बंक-नाल स्थित भ्रमर-गुहा के गुह्य मार्ग से अनन्तकाल से बिछुड़े अपने दिव्य प्रियतम से चिर-मिलन हेतु सहस्रार की ओर बढ़ जाती है। . 4 विशुद्धारव्य चक्र चक्रों का विशद परिचय निम्न सारिणी द्वारा स्पष्ट हो सकता है अनाहत चक्र चित्र २-(ब) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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