Book Title: Harijan aur Jain
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf

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Page 7
________________ हरिजन और जैन बँटाते रहे हैं । इसीलिये जैन अपनेको सर्वोपरि और सर्वश्रेष्ठ माननेवाले ब्राह्मणवर्गको गुरु माननेसे इंकार करते हैं और ऊँच-नीच-भेदके बिना चाहे जिस वर्णके धर्मजिज्ञासुको अपने संघमें स्थान देते हैं। यहाँ तक कि जो समाजमें सबसे नीच समझा जाता है और तिरस्कारका पात्र होता है, उस चाण्डालको भी जैनोंने गुरुपदपर बिठाया है। साथ ही जो उच्चत्वाभिमानी ब्राह्मण जैन श्रमणोंको उनकी क्रान्तिकारी प्रवृत्तिके कारण अदर्शनीय या शूद्र समझते थे, उनको भी समानताके सिद्धान्तको सजीव बनानेके लिए अपने गुरुवर्गमें स्थान दिया हैं । जैन आचार्योका यह क्रम रहा है कि वे सदासे अपने ध्येयकी सिद्धिके लिए स्वयं शक्तिभर भाग लेते हैं और आसपासके शक्तिशाली लोगोंकी सत्ताका भी अधिकसे अधिक उपयोग करते हैं। जो कार्य वे स्वयं सरलतासे नहीं कर सकते, उस कार्यकी सिद्धि के लिए अपने अनुयायी राजाओंमंत्रियों और दूसरे अधिकारियों तथा अन्य समर्थ लोगोंका पूरा-पूरा उपयोग करते हैं । जैनधर्मकी मूल प्रकृति और आचार्य तथा विचारवान् जैनगृहस्थोंकी धार्मिक प्रवृत्ति, इन दोनोंको देखते हुए यह कौन कह सकता है कि यदि हरिजन स्वयं जैन धर्मस्थानोंमें आना चाहते हैं तो उन्हें आनेसे रोका जाय ? जो कार्य जैन धर्मगुरुओं और जैन संस्थाओंका था और होना चाहिए था वह उनके अज्ञान या प्रमादके कारण बन्द पड़ा था; उसे यदि कोई दूसरा समझदार चालू कर रहा हो, तो ऐसा कौन समझदार जैन है जो इस कामको अपना ही मानकर उसे बढ़ानेका प्रयत्न नहीं करेगा? और अपनी अब तकको अज्ञानजन्य भूल सुधारनेके बदले यह कार्य करनेवालेको धन्यवाद नहीं देगा ? इस तरह यदि हम देखें तो बंबई सरकारने जो कानून बनाया है वह स्पष्ट रूपसे जैनधर्मका ही कार्य है। जैनोंको यही मानकर चलना चाहिए कि 'हरिजन-मन्दिर प्रवेश' बिल उपस्थित करनेवाले माननीय सदस्य और उसे कानूनका रूप देनेवाली बम्बई सरकार एक तरहसे हेमचन्द्र, कुमारपाल और हीरविजयजीका कार्य कर रही है। इसके बदले अपने मूलभूत ध्येयसे उलटी दिशामें चलना तो अपने धर्मकी हार और सनातन वैदिक परम्पराकी जीत स्वीकार करना है। हरिजन-मन्दिर प्रवेश बिल चाहे जिस व्यक्तिने उपस्थित किया हो और चाहे जिस सरकारके अधिकारमें हो, पर इसमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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