Book Title: Haribhadra ka Aavdan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 41
________________ [ ४० ] तथ्व के आधार पर पुनर्विचार किया है। अब हमारे सामने दो ही विकल्प हैं या तो पट्टावलियों के अनुसार हरिभद्र को जिनभद्र और जिनदास के पूर्व मानकर उनकी कृतियों पर विशेष रूप से जिनदास महत्तर पर हरिभद्र का प्रभाव सिद्ध करें या फिर धूर्ताख्यान के मूल स्रोत को अन्य किसी पूर्ववर्ती रचना या लोक परम्परा में खोजें। यह तो स्पष्ट है कि धूर्ताख्यान चाहे वह निशीथचूर्णी का हो या हरिभद्र का स्पष्ट ही पौराणिक युग के पूर्व की रचना नहीं है । क्योंकि वे दोनों ही सामान्यतया श्रति, पुराण, भारत और रामायण का उल्लेख करते हैं। हरिभद्र ने तो एक स्थान पर विष्णु पुराण (भारत के) अरण्यपर्व और अर्थशास्त्र का भी उल्लेख किया है अतः निश्चित ही यह आख्यान इनकी रचना के बाद ही रचा गया होगा। उपलब्ध आगमों में अनुयोगद्वार भारत और रामायण का उल्लेख करता है। अनुयोगद्वार की विषयवस्तु से ऐसा लगता है कि अपने अन्तिम रूप में वह लगभग ५वीं शती की रचना है। धूर्ताख्यान में 'भारत' नाम आता है महाभारत नहीं। अतः इतना निश्चित है कि धूर्ताख्यान के कथानक के आद्यस्रोत की पूर्व सीमा ईसा की ४ थी या ५वीं शती से आगे नहीं जा सकती है । पुनः निशीथभाष्य और निशीथचूर्णी में उल्लेख होने से धूर्ताख्यान के आधस्रोत की अपर अन्तिम सीमा इनके पश्चात् नहीं हो सकती है। इन ग्रन्थों का रचनाकाल ईसा की सातवीं शती का उत्तरार्ध हो सकता है। अतः धूर्ताख्यान का आद्यस्रोत ईसा की ५वीं से ७वीं शती के बीच का है। यदि हरिभद्र ही इसके मौलिक रूप में लेखक हैं तो फिर उनका समय विक्रम संवत् ५८५ मानने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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