Book Title: Gyan bhandaro par Ek Drushtipat
Author(s): Punyavijay
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

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Page 6
________________ पूरा सेट बहुत शुद्ध रूप में तथा सटिप्पण विद्यमान है, जो वि.सं. १२७९ में लिखा गया है। अहमदाबाद के केवल दो भाण्डारों का ही मैं निर्देश करता हूं। पगथिया के उपाश्रय के संग्रहों में से उपाध्याय श्री यशोविजयजी के स्वहस्तलिखित प्रमेयमाला तथा वीतरागस्तोत्र अष्टम प्रकाश की व्याख्या—ये दो ग्रन्थ अभी अभी आचार्य श्री विजयमनोहरसूरिजी द्वारा मिले हैं । बादशाह जहांगीर द्वारा सम्मानित विद्वान् भानुचन्द्र और सिद्धिचन्द्र रचित कई ग्रन्थ इसी संग्रह में है, जैसे कि नैषध की तथा वासवदत्ता की टीका आदि । देवशा के पाडे का संग्रह भी महत्त्व का है। इसमें भी भानुचन्द्र, सिद्धिचन्द्र के अनेक ग्रन्थ सुने गए हैं। कपड़े पर पत्राकार में लिखा अभी तक एक ही ग्रन्थ मिला है, जो पाटनगत श्रीसंघ के भाण्डार का है। यों तो रोल-टिप्पने के आकार के कपड़े पर लिखे हुए कई ग्रन्थ मिले हैं, पर पत्राकार लिखित यह एक ही ग्रन्थ है। सोने-चांदी की स्याही से बने तथा अनेक रंग वाले सैकड़ों नानाविध चित्र जैसे ताड़पत्रीय ग्रन्थों पर मिलते हैं वैसे ही कागज के ग्रन्थों पर भी है। इसी तरह कागज तथा कपड़े पर आलिखित अलंकारस्वचित विज्ञप्तिपत्र, चित्रपट भी बहुतायत से मिलते हैं । पाठे (पढ़ते समय पन्ने रखने तथा प्रताकार ग्रन्थ बांधने के लिये जो दोनों और गत्ते रखे जाते हैं—पुढे), डिब्बे आदि भी सचित्र तथा विविध आकार के प्राप्त होते हैं। डिब्बों की एक खूबी यह भी है कि उनमें से कोई चर्मजटित है, कोई वस्त्र जटित है तो कोई कागज से मढ़े हुए हैं । जैसी आजकल की छपी हुई पुस्तकों की जिल्दों पर रचनाएं देखी जाती हैं वैसी इन डिब्बों पर भी ठप्पों से-सांचों से ढाली हुई अनेक तरह की रंग-बिरंगी रचनाएं हैं। ताड़पत्र, कागज, कपड़ा आदि पर किन साधनों से किस किस तरह लिखा जाता था? ताड़पत्र तथा कागज कहां कहां से आते थे? वे कैसे लिखने लायक बनाए जाते थे? सोने, चांदी की स्याही तथा अन्य रंग कैसे तैयार किए जाते थे?, चित्र की तूलिका आदि कैसे होते थे? इत्यादि बातों का यहां तो मैं संक्षेप में ही निर्देश करूंगा। बाकी, इस बारे में मैंने अन्यत्र विस्तार से लिखा है। लेखन विषयक सामग्री ताड़पत्र और कागज-ज्ञानसंग्रह लिखवाने के लिये भिन्न भिन्न प्रकार के अच्छे से अच्छे ताड़पत्र और कागज अपने देश के विभिन्न भागों में से मंगाए जाते थे। ताड़पत्र मलबार आदि स्थानों में से आते थे । पाटन और खम्भात के ज्ञानभाण्डारों से इस बारे के पन्द्रहवीं शती के ज्ञान भंडारों पर एक दृष्टिपात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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