Book Title: Guru Parampara ki Gaurav Gatha Author(s): Prakash Muni Publisher: Z_Munidway_Abhinandan_Granth_012006.pdf View full book textPage 5
________________ गुरु-परंपरा की गौरव गाथा ३७७ (१) कवि एवं वाचस्पति श्री केवल मुनि जी म. (२) तपस्वी श्री इन्दर मुनिजी म. (ताल वाले) (३) तपस्वी एवं वक्ता श्री बिमल मुनिजी म० (४) त० श्री मेघराजजी म०, (५) मधुर वक्ता श्री मूलचन्दजी म०, (६) अवधानी श्री अशोक मुनिजी म०, (७) शास्त्री श्री गणेश मुनिजी म०, (5) तपस्वी श्री मोहनलाल जी म०, (९) वक्ता श्री मंगल मुनिजी म०, (१०) तपस्वी श्री पन्नालालजी म०, (११) संस्कृत विशारद श्री भगवती मुनि म० (१२) प्र० श्री उदय मुनिजी म० (सिद्धान्त-आचार्य), (१३) तपस्वी श्री वृद्धिचन्दजी म०, (१४) श्री सुदर्शन मुनिजी म०, (१५) सेवाभावी श्री प्रदीप मुनिजी म०, (१६) सफल वक्ता श्री अजीत मुनिजी म०, (१७) वक्ता श्री चन्दन मुनिजी म०, (१८) वि० श्री वीरेन्द्र मुनिजी म०, (१६) कवि श्री सुभाष मुनिजी म०, (२०) श्री रिषभ मुनिजी म०, (२१) मधुर गायक श्री प्रमोद मुनिजी म०, (२२) सेवाभावी श्री भेरुलालजी म०, (२३) तपस्वी श्री वर्धमानजी म०, (२४) श्री पीयूष मुनिजी म०। । वादीमानमर्दक गुरु श्री नन्दलाल जी महाराज वि० सं० १९१२ भादवा सुदी की शुभ वेला में आपका जन्म कंजार्डा गांव में हुआ। परम्परागत सुसंस्कारों से प्रेरित होकर आठ वर्ष की अति लघुवय में अर्थात् सं० १९२० पौष मास में आप अपने ज्येष्ठ युगल म्राताओं (गुरु श्री जवाहरलालजी १०, श्री हीरालालजी म.) के साथ दीक्षा जैसे महान् मार्ग पर चल पड़े। शैशव काल से आप प्रज्ञावान थे। कुछ ही समय में पांच-सात शास्त्रीय गाया कंठस्थ कर लिया करते थे। विद्याध्ययन की रुचि देखकर एकदा भावी आचार्य प्रवर श्री चौथमलजी म. ने रतनचन्दजी महाराज से कहा कि-'नन्दलाल मुनि को कुछ वर्षों तक पढ़ाई के लिए मेरी सेवा में रहने दो। क्योंकि इस बालक मुनि की बुद्धि बड़ी तेजस्विनी है । सुन्दर ढंग से मैं नन्दलाल मुनि को आगमों की वाचना और धारणा करवाने की भावना रखता हूँ। आशा है यह मुनि भविष्य में आगमों के महान् ज्ञाता के रूप में उभरेगा।" श्री रतनचन्दजी म० ने आचार्यदेव की आज्ञा शिरोधार्य की। सं० १९२२ का वर्षावास आचार्यदेव का जावद शहर में था। उन दिनों तेरापंथी सम्प्रदाय के तीन मुनियों का वर्षावास भी वहीं था। एक दिन मुनियों का पारस्परिक मिलना हुआ तो आचार्यदेव ने सहज में पूछा"आजकल आप व्याख्यान में कौनसा शास्त्र पढ़ते हैं ? "भगवती सूत्र" प्रमुख मुनि ने उत्तर दिया । पुनः आचार्य प्रवर ने पूछा-"तो बताइए, शकेन्द्र और चमरेन्द्र के वज्र को ऊर्ध्व लोक में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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