Book Title: Guru Mahima ka Chor Nahi
Author(s): Abhilasha Hiravat
Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf

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Page 4
________________ 114 जिनवाणी 10 जनवरी 2011 “अल्पाक्षरोऽपिन तथादयोऽपि न तथाश्रितोऽपि नैव तथा। निर्ग्रन्थोऽपि च न तथा वृत्तिविहीनोऽपि नैव तथा।। सन्नपि गुरुत्वयुक्तो गुरुत्वमुक्तो भवेदगुरूनियतम्। नासक्तोऽप्यासक्तोऽभयोऽपि सभयोऽद्भुतश्चैवम् / / " अर्थात् “गुरु अल्पाक्षर होते हुए भी अल्पाक्षर नहीं होते, निर्दय होते हुए भी निर्दय नहीं होते, आश्रित होते हुए भी आश्रित नहीं होते, निर्ग्रन्थ होते हुए भी निर्ग्रन्थ नहीं होते और वृत्ति रहित होते हुए भी वृत्ति रहित नहीं होते हैं, गुरुत्व युक्त होकर भी गुरुत्व मुक्त होते हैं, अनासक्त होकर भी आसक्त होते हैं तथा नियम से भय रहित होकर भी भयसहित होते हैं इस प्रकार वे यथार्थतः अद्भुत होते हैं।" भावार्थ:- गुरु अल्पाक्षर अर्थात् अल्प बोलने वाले होते हैं, लेकिन वे अल्पाक्षर अर्थात् मन्द बुद्धि नहीं होते हैं। वे दोषों के प्रति निर्दय होकर भी प्राणियों के प्रति निर्दय नहीं होते। वे आत्माश्रित होते हैं, पराश्रित नहीं। वे निर्ग्रन्थ अर्थात् परिग्रह रहित होते हैं, पर ग्रन्थ शास्त्र रहित नहीं होते / वे वृत्ति अर्थात् आजीविका से रहित होते हैं, पर त्याग वृत्ति से रहित नहीं। वे गुरुत्व युक्त अर्थात् गुरुता से युक्त होते हुए भी गुरुत्व मुक्त अर्थात् गर्व से मुक्त होते हैं। वे विषयों में आसक्त नहीं होते पर धर्म में आसक्त होते हैं। वे अभय होते हैं क्योंकि इहलोक, परलोक, अत्राण, अगुप्ति, मरण, वेदना और आकस्मिक भय उनमें नहीं होते, किन्तु संसार-भ्रमण से भयभीत होने के कारण अभय नहीं होते।" गुरु लघुता में गुरुता और गुरुता में लघुता का प्रत्यक्ष समन्वय होते हैं। गुरु की महिमा का जितना गुणगान किया जाए कम है। कहा जाता है कि समुद्र भर को स्याही बना लें, पूरी पृथ्वी को पृष्ठ बना लें और माँ सरस्वती स्वयं भी सदा लिखती रहे तो भी गुरु की महिमा पूरी लिखी नहीं जा सकती। गुरु की महिमा अवर्णनीय है। -31/548, आदर्श नगर, बंगाल केमिकल्स के पास, वी, मुम्बई-400025 (महा.) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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