Book Title: Guru Gun Likhya na Jay
Author(s): Devendranath Modi
Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf

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Page 3
________________ 141 | 10 जनवरी 2011 || जिनवाणी के प्रति / वस्तुतः गुरुदेव के गुणों एवं उपकारों का वर्णन करना सम्भव ही नहीं है। गुरु कृपा से ही निर्मल और विकार रहित ज्ञान की प्राप्ति संभव है। संत तुलसीदास जी ने कहा है- “गुरु के चरणों के नखों में से निकलने वाली ज्योति अन्तहर्दय का अंधकार दूर करने के लिए पर्याप्त है।" इस असार संसार में जिसका कोई सद्गुरु नहीं वाकई में उसका कोई सच्चा हितैषी भी नहीं है। सभी प्रकार से सम्पन्न होते हुए भी वह विपन्नावस्था में अनाथ के समान है। गुरुदेव की कृपा से ही मनुष्य शान्ति का अधिकारी होता है और पूर्णता को प्राप्त करता है। परम पूजनीय प्रतिपल स्मरणीय आचार्य भगवन्त श्री हस्तीमल जी म.सा. मेरे आराध्य गुरुदेव हैं। गुरुदेव का अमर व्यक्तित्व एवं कृतित्व सबके मानस को असीम प्रेरणा प्रदान करता है, आत्मबल प्रदान करता है। जन-जन में आत्मशक्ति का विकास करता है। उन्हीं श्री के मुखारविन्द से उद्बोधित 'गुरु' की महत्ता “नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं' महाग्रंथ में अग्रानुसार वर्णित की गई है-“देव का अवलम्बन परोक्ष रहता है और गुरु का अवलम्बन प्रत्यक्ष / कदाचित् ही कोई भाग्यशाली ऐसे नर रत्न संसार में होंगे, जिन्हें देव के रूप में और गुरु के रूप में अर्थात् दोनों ही रूपों में एक ही आराध्य मिला हो / देव और गुरु एक ही मिलें, यह चतुर्थ आरक में ही संभव है। तीर्थंकर भगवान् महावीर में दोनों रूप विद्यमान थे। वे देव भी थे और गुरु भी थे। लेकिन हमारे देव अलग हैं और गुरु अलग / हमारे लिए देव प्रत्यक्ष नहीं हैं, परन्तु गुरु प्रत्यक्ष हैं। इसलिए यदि कोई मानव अपना हित चाहता है तो उस मानव को सद्गुरु की आराधना करनी चाहिए।" __आगे गुरुदेव फरमाते हैं- “जीवन में गुरु ही सबसे बड़े चिकित्सक हैं / कोई भी अन्तर-समस्या आती है तो उस समस्या को हल करने का काम और मन के रोग का निवारण करने का काम गुरु करता है / कभी क्षोभ आ गया, कभी उत्तेजना आ गई, कभी मोह ने घेर लिया, कभी अहंकार ने, कभी लोभ ने, कभी मान ने, और कभी मत्सर ने आकर घेर लिया तो इनसे बचने का उपाय गुरु ही बता सकता है।" स्पष्ट है, गुरुदेव की कृपा से ही मनुष्य शांति का अधिकारी होता है और पूर्णतया को प्राप्त करता है। गुरु के ऋण से मुक्त होने के लिए सत्शिष्यों का इतना ही कर्त्तव्य है कि वे विशुद्ध भाव से अपना सब कुछ और शरीर भी गुरुदेव की सेवा में समर्पित कर दें। - 'हुकम', 5/A/1, सुभाष नगर, पालरोड़, जोधपुर (राज.) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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