Book Title: Guru Ek ya Anek Naydrushti
Author(s): Pramodmuni
Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf

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Page 1
________________ गुरु एक या अनेक : नयदृष्टि तत्त्वचिन्तक श्री प्रमोदमुनि जी म. सा. तीर्थंकर प्रभु भी धर्म गुरु हैं तथा सुसाधु भी गुरु हैं। नयदृष्टि से दोनों गुरु हैं, जिन्होंने तीर्थंकरों से सीधा ज्ञान प्राप्त किया, उनके लिए तीर्थंकर धर्माचार्य हैं तथा जिन्होंने साधुओं से ज्ञान प्राप्त किया उनके लिए सुसाधु गुरु हैं, किन्तु क्रियात्मक दृष्टि से एक ही गुरु से ज्ञान प्राप्त करने के कारण व्यवहार नय से गुरु एक होता है । इसे तत्त्वचिन्तक मुनि श्री ने प्रवचन में विशेषावश्यकभाष्य के आधार से भी स्पष्ट किया है। वे यह भी स्वीकार करते हैं कि एक गुरु के होने पर भी सेवा सभी साधुओं की की जा सकती है। -सम्पादक 10 जनवरी 2011 जिनवाणी 45 स्वच्छ हृदय में, निर्मल अन्तःकरण में, समाधियुक्त चित्त में, धर्म के बीज वपन कर शुक्लध्यान रूपी फसल को लहलहा कर मुक्ति रूपी फल प्राप्त करने वाले अनन्त - अनन्त उपकारी वीतराग भगवन्त और वीतराग भगवन्तों द्वारा प्ररूपित इस वीतराग वाणी के रहस्य को हृदयंगम कर उस परम मोक्ष के फल को प्राप्त करने के लिए धर्म के मूल विनय को जीवन में आत्मसात् करते हुए अपूर्व और अद्वितीय गुरु-भक्ति के द्वारा इस पद पर पहुँच कर संघ का रक्षण करने वाले आचार्य भगवन्त के चरणों में वन्दन के पश्चात् एवं धम्मस्स विणओ, मूलं परमो अ से मुक्खो । जेण कित्तिं सुअं सिग्धं, नीसेसं चाभिगच्छइ ॥ दशवैकालिक सूत्र के अध्ययन नौ के उद्देशक दूसरे की गाथा एक व दो में पहले वृक्ष की बात कही गई और फिर वृक्ष की उपमा धर्म पर घटाई गयी । धर्मरूपी वृक्ष का मूल विनय कहकर फल के रूप में मोक्ष का विवेचन किया गया। वह धर्म हृदय की सरलता में उपजता है । सरल की सिद्धि होती है । शुद्ध आत्मा में धर्म ठहरता है। उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया Jain Educationa International सोही उज्जयभूयस्स, धम्मो सुद्धस्स चिट्ठई । (अ. 3, गाथा-12) सरलता कहाँ होगी? उत्तराध्ययन सूत्र के 29 वें अध्ययन में पृच्छा की गई। वहाँ कहा गया अपने दोषों को देखने से सरलता आती है। अभी-अभी मुनिराज (श्री योगेशमुनि जी महाराज) कह रहे थे, वही बात फिर से दोहराई जा रही है - "भूल करने के लिए कोई समय अच्छा नहीं है और की हुई भूल को सुधारने के लिए कोई समय खराब नहीं है । " साधना किसका नाम है ? जानी हुई बुराई करे नहीं, की हुई बुराई दोहराये नहीं'जाणियव्वा न समायरियव्वा' और तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ।" बात चल रही थी, 'गुरु एक: सेवा अनेक ।' हमारे आगम में ऐसा कोई सूत्र नहीं ऐसा कोई For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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