Book Title: Gunratnagani ki Tarka Tarangini Author(s): Jitendra Jetli Publisher: Z_Manidhari_Jinchandrasuri_Ashtam_Shatabdi_Smruti_Granth_012019.pdf View full book textPage 2
________________ । १०, है इस वास्ते यह चर्चा यहां की जाय यह अधिक तर्कसंगत न्यायसूत्र के वात्यस्यापन भाष्य में शास्त्र की विविध प्रतीत होता है। प्रवृत्ति, उद्देश, लक्षण तथा परीक्षा निर्दिष्ट है । तर्कभाषाकार ___ समासवाद में गोवर्धन ने न्यायसूत्र के प्रथमसूत्र में इत- इन तीनों का लक्षण देते हैं। प्रकाशिका के कर्ता गोवर्धन रेतर द्वन्द समास कहकर सूत्र को समझाया है । गुणरत्लग णि ने इन तीनों विषय की विस्तृत चर्चा करते हैं। उन्हीं का भिन्न-भिन्न द्वन्द्व समासों की चर्चा पाणिनि के सूत्र के आधार अनुसरण करते हुए गुणरत्न इन विषयों की ओर विस्तृत पर की है। वे कर्मधाराय और द्वन्द्व के भेद को समझकर चर्चा करते हैं। उनकी इस चर्चा में उनका नव्यन्याय सत्र में इतरेतर द्वन्द्व समास क्यों है इस विषय को स्पष्ट का पाण्डित्य स्पष्ट प्रतीत होता है। करते हैं। इस चर्चा से गुणरत्नगणि अच्छे वैयाकरण थे यह भी प्रतीत होता है। उद्देश, लक्षण और परीक्षा इन तीनों की चर्चा के पीछे __ समासवाद के अनन्तर प्रकाशिकाकार मोक्षवाद को चर्चा प्रमाण वगैरह सोलह पदार्थो का विचार शुरू होता है । विस्तार से करते हैं। न्याय के सोलह पदार्थों का तत्वज्ञान प्रमाण का क्रम प्रथम होने से स्वाभाविक रूप से प्रमाण का मोक्ष का कारण किस तरह होता है यह समझाने का प्रयल लक्षण और परीक्षा को जाती है । गुणरत्न प्रमाण के लक्षण करते हैं । वे शास्त्र तथा तत्वज्ञान को मोक्ष का सीधा कारण में प्रमा की यथार्थता क्या है इसको चर्चा गोवर्धन का अनुन मानकर शास्त्र तथा तत्वज्ञान मोक्ष के प्रयोजक हैं ऐसा सरण करते हुए विस्तार से करते हैं। यथार्थत्व को समसिद्ध करते हैं ।५ गुणरत्न प्रकाशिका के प्रामाणिक टोका- झाते हुए तद्वति तत्प्रकारात्व में गुणरत्न 'तद्वति' पद के कार होनेसे गोवर्धन की इस बात का समर्थन करते हुए इसे अर्थ में जितने भी दिरोधि अर्थ हैं उनका युक्ति से खण्डन विस्तार से समझाते हैं और किस तरह शास्त्र और तत्वज्ञान करते हैं। प्रमा का करण प्रमाण है ऐसा लक्षण करने मोक्ष का सीधा जनक न होकर प्रयोजक हैं इसे स्पष्ट करते में जैसे प्रमा के लक्षण की चर्चा करनी होती है उसी हैं। इस चर्चा में गुणरत्नग णि काशीमरण से मुक्ति होती है तरह करण की भी चर्चा स्वाभाविक रूपसे करनी पड़ती या नहीं इसकी भी चर्चा करते हैं और नैयायिक मतानसार है। गोवर्धन प्रमा करण प्रमाण को समझाते हुए काशीमरण से तत्वज्ञान होता है और तत्वज्ञान मोक्षका 'अनुभवत्वव्याप्याजात्यवच्छिन्नकार्यतानिरूपितकारणताश्रयत्वे प्रयोजक है इस बात को वे सिद्ध करते हैं। यहां काशी सति प्रमाकरणत्वम् प्रमावं' ऐसी प्रमाण की व्याख्या मरण जैसा सरल मार्ग को छोड़कर शास्त्रभ्यास जैसा कठिन देते हैं। गुणरत्न नव्यन्याय की पद्धति से विस्तार से मार्ग क्यों लिया जाय ? जैसे पूर्वपक्ष का खण्डन गुणरत्न प्रमाण के इस लक्षण का पकृत्य करके समझाते हैं।' प्रामाणिक टीकासार के नाते करते हैं। वे चाहते तो इस कारण के लक्षण को समझाते हुए उन्होंने पांचों विषय का अच्छी तरह खण्डन कर सकते थे पर प्रामाणिक अन्यथासिद्धि को भी विस्तार से स्पष्ट किया है। टीकासार होनसे ही उन्होंने ऐसा यहां नहीं किया है। तदनन्तर तीनों प्रकार के करण तथा समवायि कारण और ३ द्रष्टव्य मङ्गलवाद तर्कतरङ्गिणी पृ० १ से ८ सं० डॉ० वसन्त पारीख ४ द्रष्टव्य वही पृ० १० ७ , वही पृ० ३७-५१ ८ द्रष्टव्य वही पृ०५८ ५ द्रष्टव्य तर्कतरङ्गिणी मोक्षवाद पृ० २३-२८ , , पृ०-६७-७१ तथा पृष्ठ ७८-८४ ६ , वही पृ० ३० १० , पृ० ८४-६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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