Book Title: Gujrat me Rachit Katipay Digambar Jain Granth Author(s): Bhogilal J Sandesara Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf View full book textPage 5
________________ 120 डॉ० भोगीलाल जयचन्द भाई सांडेसरा 'सं०१५७१ वर्षे प्राषाढ वदि 12 बुधे अद्यइ धोघाद्गे श्रीचंद्रप्रभचैत्यालये श्रीमूलसंधे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे श्री कूददाचार्यान्वये भद्रारक श्रीपद्मनंदिदेवास्तत्प भ० देवेन्द्रकीतिदेवास्तत्प भ० श्रीविद्यानदिदेवास्तत्प? भ. श्रीमल्लिभूषणदेवास्तत्पट्टालंकार गच्छनायक जिनाज्ञाप्रतिपालक छत्रीसगुणविराजमान बइतालीसदोषनिवारक औदार्यस्थैर्यगाम्भोर्यादिगुणविराजमान भट्टारक श्रीलक्ष्मीचंददेवोपदेशात् हंबडज्ञातीय एकादशप्रतिमाधारक द्वादशविधतपश्चरणनिरत त्रिपंचास... ..............' (पाण्डुलिपि का अन्तिम पत्र लापता होने से पुष्पिका को आखिरी चन्द पंक्तियां नहीं मिलती।) - इसके बाद का ग्रन्थ है अमरकीत्तिकृत 'छकम्मूवएसो' अथवा 'षटकर्मोपदेश' / यह श्रावकों के धर्म का आलेखन करनेवाला अपभ्रंश काव्य है / इसकी रचना महीतट प्रदेश के गोद्रह (पंचमहाल जिले के गोधरा) में सं० 1274 (ई० स० 1216) में हुई है। 2500 पंक्तियों के इस ग्रन्थ का सं. 1544 में लिखा हुआ हस्तलेख अपभ्रंश और प्राचीन गुजराती के सुप्रसिद्ध विद्वान् स्व० प्रो० केशवलाल हर्षदराय ध्रुव ने सर्वप्रथम प्राप्त किया था। तत्पश्चात् प्रो० मधुसुदन मोदी ने उसका सम्पादन किया और गायकवाइस अोरियेन्टल सको प्रसिद्ध करने का आयोजन हो गया है। 'छकम्मुवएसो' के कर्ता अमरकीत्ति दिगम्बर सम्प्रदाय के माथुर संघ के चन्द्र त्ति के शिष्य थे। नागर कूल के गुणपाल एवं चच्चिणी के पुत्र अम्बाप्रसाद की प्रार्थना से इस काव्य की रचना हुई / कर्ता के अपने ही कथन के अनुसार अम्बाप्रसाद उनका छोटा भाई था। इससे विदित होता है कि अमरकीत्ति पूर्वाश्रम में नागर ब्राह्मण थे और बाद में उन्होंने दिगम्बर साधु की दीक्षा ली थी। उनका यह भी विधान है कि 'छकम्मुवएसो' की रचना के समय गोद्रह में चौलुक्य वश के कर्णराजा का शासन प्रवर्त्तमान था। गोद्रह के चौलुक्य राजाओं की शाखा अणहिलवाड पाटण के चौलुक्य राजवंश से भिन्न है, और अमरकीत्ति ने जिसका उल्लेख किया है वह कर्ण उससे करीब सवा सौ वर्ष पूर्व के गुजरात के चौलुक्य नपति कर्णदेव (सिद्धराज जयसिंह के पिता कर्ण सोलंकी) से भिन्न है। 'छकम्मूवएसो' की प्रशस्ति में अमरकीर्ति ने अपने अन्य सात ग्रन्थों का उल्लेख किया है: 'नेमिनाथचरित्र', 'महावीरचरित्र', 'यशोधरचरित्र', 'धर्मचरित्र टिप्पण', 'सुभाषितरत्ननिधि', 'चूडामणी' और 'ध्यानो देश'। तदुपरान्त वह कहता है कि लोगों के आनन्ददायक बहतेरे संस्कृत-प्राकृत काव्य भी उसने लिखे थे। परन्तु इनमें से एक कृति अभी मिलती नहीं है। प्रमाण में प्राचीन काल में गुजरात में रचित दिगम्बर साहित्य की ये उपलब्ध रचनाएं हैं। यदि ऐसी अन्य कृतियों की भी खोज की जाय तो गुजरात के दिगम्बर सम्प्रदाय के इतिहास पर एवं तद्द्वारा गुजरात के सांस्कृतिक इतिहास पर ठीक-ठीक प्रकाश डाला जा सकेगा। 1. 'छकम्मुवएसो' के आदि-अन्त के अवतरण के लिए देखिये मोहनलाल दलिचन्द देसाई, जैन गुर्जर कविओं', भाग 1, प्रस्तावना, पृ० 76-78%, केशवराम शास्त्री, 'पापणा कवियों, पृ. 204-51 / 2. प्राचीन गुजराती में भी थोड़ा कुछ दिगम्बर साहित्य मिलता है। श्री मोहनलाल देसाई ने ('जैन गुर्जर कविनों', भाग 1. पृ० 53-55) मूलसंघ के भुवनकीत्ति के शिष्य ब्रह्मजिनदासकृत 'हरिवंशरास' (सं० 1520), 'यशोधर रास', 'आदिनाथ रास' और 'श्रेणिक रास' का उल्लेख किया है / दिगम्बरकवि रचित पांच अज्ञात फागु-काव्यों का परिचय श्री अगरचन्द नाहटा ने दिया है ('स्वाध्याय' त्रैमासिक, पु० 1, अंक 4), जिनमें से रत्नकीति का 'नेमिनाथ फाग' गुजरात के भड़ौच के नजदीक के गांव हांसोट में रचा हा है। गुजरात में रचित दिगम्बर साहित्य के उपरान्त गुजरात में जिनकी प्रतिलिपि की गई हो ऐसे दिगम्बर ग्रन्थों के लेखन-स्थान एवं लेखनवर्ष का अध्ययन यदि पाण्डुलिपियों की मुद्रित सूचियां आदि के आधार पर किया जाय, तो भी गुजरात के दिगम्बर सम्प्रदाय के प्रसार के बारे में स्थलकालदृष्ट्या बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त हो सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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