Book Title: Gujarat Me Jain Dharm Aur Jain Kala Author(s): Harihar Sinh Publisher: Z_Jain_Vidya_evam_Prakrit_014026_HR.pdf View full book textPage 8
________________ गुजरात में जैनधर्म और जैन कला ६९ यात्रा कर वस्तुपाल - तेजपाल की धार्मिक प्रवृत्तियों परन्तु उनकी सबसे बड़ी देन उसकी दानशीलता थी जो उसने १२५६-५८ ई. के दौरान गुजरात में पड़े भयंकर अकाल के समय मानव करा कर तथा जैन तीर्थों की का सिलसिला जारी रखा। कल्याण हेतु किया था । ६७ उसके इस कार्य से, मिली थी, जैन धर्म की स्थिति काफी मजबूत जैन वणिक् ने भी जैन मन्दिरों का निर्माण के जैन मन्दिर इसी काल में निर्मित हुए हैं । जिसमें उसे एक जैन साधु से प्रेरणा हुई होगी । पेथड नामक एक अन्य कराया था । मियाणी एवं कंथकोट इस प्रकार १३वीं सदी तक गुजरात श्वेताम्बर जैन धर्म का महत्त्वपूर्ण केन्द्र बन गया । इस काल के सभी जैन मन्दिर श्वेताम्बर परम्परा के हैं और उनमें किसी-न-किसी तीर्थंकर की प्रतिमा स्थापित की गई है । सोलंकी राजाओं के पर्याप्त संरक्षण प्रदान करने से तथा वहाँ की जनता द्वारा समुचित पोषण मिलने से श्वेताम्बर जैन धर्म आज भी गुजरात में एक प्रमुख धर्म के रूप में विद्यमान है । सन्दर्भ : १. हेमचन्द्र, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, भाग १, अंग्रेजी अनुवाद - जान्सन, एच. एम., १९३१, पृ. ३५६ । २. वहीं, भाग ५, बड़ौदा, १९६२, पृ. २६२ २६५ एवं ३१३; उत्तराध्ययनसूत्र, अंग्रेजी अनु. - हर्मन जकोबी, सैक्रेड बुक्स आफ दी ईस्ट, भाग ४५, आक्सफोर्ड, १८९५, पृ. ११५ । ३. जैन, का. प्र. 'श्री निर्वाणक्षेत्र गिरनार', जैन एंटीक्वैरी, भाग ५, संख्या ३, पृ. १८४ । ४. स्टीवेंशन, एस., हर्ट आफ जैनिज्म, लंदन, १९१५, पू. ७४ । ५. जैन, का. प्र., उपर्युक्त, पृ. १९०; जैन, कै. चन्द्र, जैनिज्म इन राजस्थान, शोलापुर, १९६३, पृ. ८ । बड़ौदा, ६. बाऊन, डब्ल्यू. एन., दी स्टोरी आफ कालक, वाशिंगटन, १९३३, पृ. ६६ ॥ ', ७. स्टीवेंशन, उपर्युक्त, पृ. ७७-७८; शाह, सी. जे. उत्तर हिन्दुस्तानमां जैन धर्म, बम्बई, १९३७, पृ. १७२ । ८. सरकार, डी. सी., सेलेक्ट इंस्क्रिप्शंस, भाग १, कलकत्ता, १९४२, पृ. १७७ । ९. बर्जेस, जे., एंटीक्विीटीज आफ काठियावाड एण्ड कच्छ, वाराणसी, १९६४, प्लेट १७, चित्र ३ | १०. स्मिथ, वी. ए., जैन स्ता एंड अदर एंटिक्विटीज आफ मथुरा, वाराणसी, १९६९, प्लेट ७, ९ और ११ । Jain Education International For Private & Personal Use Only परिसंवाद -४ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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