Book Title: Gujarat Me Jain Dharm Aur Jain Kala
Author(s): Harihar Sinh
Publisher: Z_Jain_Vidya_evam_Prakrit_014026_HR.pdf
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________________ 72 जैन विद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन 61. सोमप्रभ, कुमारपाल प्रतिबोध, संपा.-जिनविजय, बम्बई, 1956, 2.20-24 / 62. प्रबन्धचिन्तामणि, पृ. 117-19 / 63. जिनप्रभसूरि, विविधतीर्थकल्प, संपा.-जिनविजय, शांतिनिकेतन, 1934, पृ. 79; जिनहर्षगणि, वस्तुपाल चरित, संपा.-कीर्तिमुनि, अहमदाबाद, 1941, 1.44-48; अरिसिंह, सुकृतसंकीर्तन, संपा.-पुण्यविजय, बम्बई, 1961, प्रस्तावना, वृ. 87-88 / 64. सुकृतकीर्तिकल्लोलिन्यादि वस्तुपालप्रशस्ति संग्रह, संपा.-पुण्यविजय, बंबई, 1961, पृ. 44 / 65. कथवटे ए. वी., कीर्तिकौमुदी, प्रस्तावना, पृ. 52 / 66. सांडेसरा, बी. जे., लिटरेरी सर्कल आफ महामात्य वस्तुपाल, बम्बई, 1953, पृ. 38 / 67. सर्वानन्दसूरि, जगडूचरित, संपा.-खख्खर, एम. डी. बम्बई, 1896, 6.10-63 / 68. वही, 6.68-137 / 69. देसाई, जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ. 404-405 / सान्ध्य महाविद्यालय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी। परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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