Book Title: Gopadro Devpatane Author(s): Hariharinivas Dwivedi Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf View full book textPage 4
________________ बनाया था । इस आम ने बप्पभट्टि सूरि का शिष्यत्व ग्रहण किया और गोपगिरि पर एक सौ एक हाथ लम्बा मन्दिर बनवाया जिसमें वर्धमान महावीर की विशाल प्रतिमा स्थापित की गई। बध्यमट्टिचरित तथा प्रभावक चरित से भी इस अनुश्रुति की पुष्टि होती है। " आम " यदि यशोवर्मन का राजकुमार है तब उसका समय 750 ई० माना जाएगा। गोपाचलगढ़ पर जैन मन्दिर निर्माण का यह प्रथम उल्लेख है आम द्वारा निर्मित | जैन मन्दिर बहुत समय तक अस्तित्व में रहा । संभवतः उसे तेरहवीं शताब्दी में कभी तोड़ दिया गया था। यह हड़तापूर्वक कहा जा सकता है कि इस मन्दिर में उत्कीर्ण मूर्तियां अत्यन्त पुष्ट मूर्तिशिल्प का उदाहरण थीं। अभी हाल ही में सिन्धिया पब्लिक स्कूल के इतिहास के प्राध्यापक श्री आर्थर ह्यूज को गढ़ पर गंगोताल के कचरे में एक मूर्तिखण्ड प्राप्त हुआ है। भारतीय मूर्तिकला के अवशेष की यह अप्रतिम उपलब्धि है और आठवीं शताब्दी के पश्चात् की नहीं है उस समय ग्वालियर के आसपास अन्य जैन मन्दिरों का भी निर्माण हुआ था। लेखक के सग्रह में जो जैन चौखम्मा है वह उसे मुरार नदी के पास एक बंगले में प्राप्त हुआ था वह भी आठवीं शताब्दी की कृति ज्ञात होता है । तेली के मन्दिर के प्रांगण में अनेक जैन मूर्तियां रख दी गई हैं। उनमें से अनेक आठवीं और नौवीं शताब्दी की ज्ञात होती हैं। गूजरी महल संग्रहालय में भी आठवीं और नौवीं शताब्दियों की अनेक जैन मूर्तियां हैं, परन्तु उनके उपलब्ध होने के स्थलों का पता नहीं चलता। उनमें से अनेक ग्वालियर गढ़ अथवा ग्वालियर नगर से प्राप्त हुई होंगी। 1 पट्टि सूरि उपदेश से आम ने जो विशाल जैन मन्दिर बनवाया था, उसके अवशेष मेजर जनरल कनिंघम ने भी देखे थे। वह सासबहू मन्दिर तथा हथिया पौर के Jain Education International बीच में स्थित था उस पर एक वि० सं० 1165 (सन् 1108 ई०) का शिलालेख भी मिला था, जिसमें केवल वर्ष ही पढ़ा जाता था। श्री कनिंघम ने अनुमान यह किया था कि यह मन्दिर सन् 1108 ई० में निर्मित हुआ था।' यह कथन ठीक ज्ञात नहीं होता। यह वही जैन मन्दिर था जो सन् 750 ई० के आसपास आम ने बनवाया था । वि० सं० 1165 का शिलालेख जीर्णोद्वार से सम्बन्धित होगा । वि० सं० 1165 में कोई नवीन जैन मन्दिर गोपाचलगढ़ पर निर्मित नहीं हुआ था, न हो सकता था । कन्नौज के प्रतीहार राजा परम वैष्णव थे। रामदेव तथा भोजदेव ने गोपाचलगढ़ को अपनी दूसरी राजधानी बनाया था। चतुर्भुज मन्दिर के शिलालेख तथा अन्य शिलालेखों से यह ज्ञात होता है कि रामदेव प्रतीहार ने गोपाचलगढ़ पर स्वामि कार्तिकेय का मन्दिर बनवाया था और आनन्दपुर (गुजरात) के बाइसभट्ट को "मर्यादा" (सीमाओं का रक्षक ) नियुक्त किया था। वि० सं० 932 (सन् 875 ई०) के शिला। लेख से ज्ञात होता है कि इस बाइल्लभट्ट का पुत्र अल्ल गढ़ का कोट्टपाल था और उसने अपने पिता की स्मृति में बाइस्लभट्ट स्वामिन् विष्णु का मन्दिर बनवाया था। परन्तु इसका यह आश्रय कदापि नहीं है कि प्रतीहारों के समय में जैन धर्म के अनुयायियों पर कोई प्रतिबंध लगाया गया था। भारत का राजतन्त्र समस्त प्रजाधर्मों के पोषण की नीति अपनाता था । जिस समय कन्नौज के प्रतीहारों का प्रताप सूर्य पूर्ण प्रभामय होकर अस्ताचलगामी हो रहा था, उसी समय चम्बल की उपत्यका में एक नवीन असिजीवी वर्ग संगठित हो रहा था स्थानीय कच्छपान्वय वर्ग को 4. आर्कोलोजिकल सर्वे रिपोर्ट, भाग 2, पृ० 363 1 द्विवेदी, ग्वालियर राज्य के अभिलेख, क्र० 8 तथा 415 5. ३२८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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