Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 4
________________ भरी हुई थी । अनेक दीक्षाएँ आपने कराई । तन, मन, धन से साधुयो की सेवा करने में आपको अपूर्व आनद मिलता था । आपका स्वर्गवास दी ही हो गया था। स्व. लाला धन्नोमलजी की धर्मपत्नी एव श्रीमती नगीनादेवीजी की माता फूलमतीजी महाराज साहब को जैनदीक्षा अगीकार किये हुए ३१ वर्ष हो है। आप क्योटद्ध, सरलस्वभाषी, घोरसयमी (कठिन सयम पालने वाले) है, सो चौथे आरे की वानगी ही हो। अनेक चपों से आप दिल्ली में स्थवि स किये हुए है। आपके सदुपदेश से दिल्ली के अनेक व्यक्ति अपनी शास्त्रो रसमिति के सदस्य बने है। ___ श्रीमती नगीना देवीकी भाति उनकी पुत्री सुश्री विजयकुमारी वडी निर्भीक युत्पन्नमति, एव धार्मिक रुचि वाली हैं। आपके तृपुन सरलस्वभाव विनयशील महतावचद भी बड़े धर्मनिष्ठ, समाजसेवी, विनयवान एव सुशिक्षित नवयुश्क हैं । ___ श्रीमती नगीनादेवीके दो पुत्रियाँ और भी हैं । एक-सुश्री विनयकुमारी, सका विवाह जोधपुर निवासी श्रीमान् हुक्मचदजी साहब जैन एडवोकेट के सुपुत्र जिनेन्द्रकुमारजी जैन एडवोकेट से हुआ है। वि० अनिलकुमार जैन, जिनका वत्र इस पुस्तक मे है-इन्हीं के सुपुत्र है । श्री अनिलकुमार अपनी समिति के दस्य हैं । दूसरी पुत्री सुश्री विमलकुमारी का विवाह दिल्लोनिवासी प्रसिद्ध ग्रेसी कार्या स्त्र० श्री मुकुन्दलालनी जौहरी " कोमीनारा" ( यह उपनाम धान मत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने उ ह दिया था) के सुपुत्र श्री हुक्मचदजी सौहरीके साथ हुना है । श्रीमती विमलकुमारी भी अपनी समितिकी सदस्या हैं। परपरा से ही चौरडिया परिवार धार्मिक प्रवृत्तियों में रुचि रखनेवाला रहा और चुस्तस्थानकवासी हैं । तन मन व धन से समाज व धर्म की खूर सेना करता आया है, यही सदा से इस परिवार का कर्तव्य रहा है। ॥ॐ शातिः॥

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