Book Title: Eshna Samiti
Author(s): Saubhagyamal Jain
Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf

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Page 7
________________ 388 जिनवाणी | 10 जनवरी 2011 | को लगते हैं। अतः साधु-साध्वी के साथ सद्गृहस्थ को भी इन नियमों की जानकारी होना परमावश्यक है, अन्यथा सुपात्र को दान दिये जाने पर भी दायक अशुभ कर्मों के बंध का भागी बन सकता है। यहाँ साधु का भी दायित्व बनता है कि उसको आहार देने के निमित्त से 'दाता' कर्म-निर्जरा के स्थान पर कर्मबंध का भागी न बने। इस कारण उद्गम के सोलह दोषों को टालकर उपयोग की वस्तु ग्रहण करे। सभी दोष आगमोक्त हैं- जिनके नामोल्लेख के साथ अर्थ मूलक संक्षिप्त परिचय और कोष्ठक में आगम का अति लघुरूप में नाम व तत्सम्बन्धी अन्य संकेतों का लेखन किया गया है। गवेषणा के अंतर्गत 16 दोष उद्गम के, 16 दोष उत्पादन के कुल 32 दोष निम्नांकित हैं। उद्गम के 16 दोषः1. आधा कर्मः- किसी साधु के निमित्त से आहारादि बनाकर देना (आचारांग 2.1.2 तथा दशा.2)। 2. ओद्देशिकः- जिस साधु के लिए आहार बना हो, उसे दूसरा साधु ग्रहण करे। (दशवै.5.1.55 तथा आचारांग सूत्र 2.1.1) 3. पूति कर्मः- शुद्ध आहार में आधाकर्मी आहार का कुछ अंश मिला होना। (दशवै.5.1.55 तथा सूत्रकृ.1.1.3.1) 4. . मिश्रजातः- अपने और साधुओं के लिए बनाया आहार (प्र.व्या.2.5, भग. 9.33) 5. स्थापनाः- साधु को देने के लिए अलग रख छोड़ना (प्र.व्या. 2.5) 6. पाहुडिया:- साधु को अच्छा आहार देने के लिए समय को आगे-पीछे करना (प्र.व्या.2.5) 7. प्रादुष्करणः- अँधेरे में रखी चीज को प्रकाश में लाकर देना (प्र.व्या.2.5) 8. क्रीतः- साधु के लिए खरीद कर देना (दशवै. 5.1.55, आचा. 2.1.1) 9. प्रामीत्यः- उधार लेकर साधु को देना (दशवै. 5.1.55, आचारां. 2.1.1) 10. परिवर्तितः- साधु के लिए अदल-बदल करके ली हुई वस्तु देना (निशीथ 14.18.19) 11. अभिहृतः- साधु के लिए वस्तु को सामने ले जाकर देना (दशवै. 3.2, आचा. 2.1.1) 12. उद्भिन्नः- बंद या लेप लगी बंद वस्तु को साधु के लिए खोलकर देना (दशवै. 5.1.45, आचा.2.1.7) 13. मालापहृतः- ऊँचे-नीचे, तिरछे स्थान जहाँ से सरलता से वस्तु न ली जा सके। (दशवै. 5.1.67, आचा.2.1.7) 14. अच्छेद्यः- निर्बल या अधीनस्थ से छीन कर देना (आचा. 2.1.1, दशा.2) 15. अनिसृष्टः- भागीदारी की वस्तु बिना भागीदार के पूछे देना (दशवै. 5.1.37) 16. अध्यवपूरकः- साधुओं का आगमन सुन बनते भोजन में कुछ सामग्री बढ़ाना (दशवै. 5.1.55) ___ उद्गम के ये सोलह दोष, गृहस्थ दाता से लगते हैं- श्रमण का कर्तव्य है कि वह गवेषणा करते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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