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22. नीचाद्वार,
25. परिसाडिय,
27. वेश्या - निवास के निकट भिक्षार्थ जाना ।
निशीथ सूत्रांतर्गत नाम :
1. नीच कुल,
4. पुकारना,
7. घृणित कुल (दशवै. में भी),
10. अन्य तीर्थिक भक्त,
3. भगवती सूत्रांतर्गत नाम:
1. क्षेत्रातिक्रान्त,
2. कालातिक्रान्त,
5. कन्तार भक्त,
6. दुर्भिक्ष भक्त
4. आचारांग सूत्रांतर्गत समाविष्ट नाम:1. संखड़ी,
5. प्रश्नव्याकरण सूत्रांतर्गत नाम:
1. रइयग,
10 जनवरी 2011 24. घृणित कुल (निशीथ में भी) 26. बरसते पानी, धुँअर, मच्छर, पतंग अधिक उड़ने, आँधी,
23. अन्धकार,
6. सासणा,
11. प्रार्थना,
जिनवाणी
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2. वर्जित घर,
5. पासत्थभक्त,
8. अग्रपिण्ड,
11. अखण्ड
2. अन्तरायक,
3. मौर्य,
8. तर्जना,
3. अविश्वसनीय घर
6. अटवी भक्त
9. सागारिक निश्राय
3. मार्गातिक्रान्त,
7. बद्दली भक्त,
2. पर्यवजात,
7. निन्दना,
12. सेवा,
13. करुणा ।
6. उत्तराध्ययन सूत्रांतर्गत समाविष्ट दोषः - ( 1 ) ज्ञाति पिण्ड 7. ठाणांग सूत्रांतर्गत दोषों के नाम:- (1) पाहुण भक्त
इस प्रकार के और भी कई प्रकार के निषेधक नियम आगमों में हैं। उपर्युक्त नियमों को भावपूर्वक उपयोग सहित पालने वाले, श्रद्धेय श्रमण-श्रमणी वर्ग का जीवन उच्चकोटि का और पवित्र होता है। शासनेश प्रभु महावीर ने निर्ग्रन्थ मुनिराजों को निम्नांकित पाँच प्रकार का आहार ग्रहण कर, साधना को उत्कृष्ट बनाने की प्रेरणा प्रदान की है :1. अरसाहार, 2. विरसाहार,
3. अन्ताहार, 4. प्रान्ताहार और 5. रुक्षाहार ।
4. स्वयं ग्रहण,
9. गारव,
4. प्रमाणातिक्रान्त 8. ग्लान भक्त
3. फुमेज्ज, वीएज्ज ।
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एषणीय अन्य वस्तुएँ:
श्रमण जीवन में आहार, पानी और स्थान के अतिरिक्त अन्य वस्तुएँ भी उपयोगी होती हैं जो सद्गृहस्थों के घरों से प्राप्त की जाती हैं, यथा:- 1. रजोहरण, 2. मुख - वस्त्रिका, 3. चोल पट्टक, 4. पात्र, 5. वस्त्र, 6. आसन, 7. कम्बल, 8. पाद पोंछन, 9. शय्या, 10. संस्तारक, 11. पीठ, 12. फलक, 13. पात्र बंध, 14. पात्र स्थापन, 15. पात्र केसरिका, 16. पटल, 17. रजस्त्राण, 18.
5. रक्खणा, 10. मित्रता,
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