Book Title: Ekla Chalo Re Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Tulsi Adhyatma Nidam Prakashan View full book textPage 6
________________ प्रस्तुति व्यक्ति को समुदाय से भिन्न कहने में कठिनाई का अनुभव कर रहा हूं । इसलिए कि जलराशि से विलग पड़ा कण अपना अस्तित्व नहीं रख पाता । समुदाय को व्यक्ति से भिन्न कहने में भी सरलता का अनुभव नहीं हो रहा है। इसलिए कि जलकणों से भिन्न जलराशि की अपनी कोई अस्मिता नहीं है । व्यक्ति और समुदाय दोनों को एक कहने में भी समस्या का समाधान नहीं देख रहा हूं । इसलिए कि जलकण पर कभी जलपोत नहीं तैरते और जलराशि को कभी सिर पर नहीं उठाया जा सकता । सरल मार्ग यह है कि जलकण और जलराशि में रहे अभेद और भेद - दोनों को एक साथ देखूं । 'एकला चलो रे' ग्रन्थ में यह प्रयत्न है कि व्यक्ति समूह के बीच में रहता हुआ अपने अकेलेपन का अनुभव करे और समूह की अस्मिता की स्वीकृति व्यक्तित्व की अस्वीकृति से जन्म न ले । मनोबल की कमी व्यक्ति को समूह में अकेला बना देती है—असहाय बना देती है । जिसका मनोबल प्रबल होता है, वह अकेले में भी समूह जैसा अनुभव करता है । भय के सन्दर्भ में अकेलेपन का अनुभव वांछनीय नहीं है । वह वांछनीय है समुदाय के संदर्भ में । प्रस्तुत कृति में उसके हस्ताक्षर पाठक को उपलब्ध है । पुलिस ऐकेडेमी, जयपुर में ( तुलसी अध्यात्म नीडम, जैन विश्व भारती तथा पुलिस एकेडेमी, राजस्थान के माध्यम से ) प्रेक्षा ध्यान के दो शिविर आयोजित हुए -- एक सबके लिए और दूसरा केवल पुलिस के जवानों और अधिकारियों के लिए | उनमें जो चिन्तन- मन्थन हुआ, वह 'एकला चलो रे' इस शीर्षक में गुंफित है । प्रस्तुत ग्रंथ के संपादन का कार्य मुनि दुलहराजजी ने किया है। वे इस कार्य में दक्ष हैं । दक्षता और श्रम दोनों के योग से स्वयं सौष्ठव आ जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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