________________
एकला चलो रे
एक नहीं हो सकता। इनकी भिन्नता से मस्तिष्क में प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है । जो लोग बहुत अधिक संवेदनशील होते हैं उनमें प्रतिक्रिया की मात्रा अधिक होती हैं । वे एक छोटी-सी घटना से अस्त-व्यस्त हो जाते हैं । घटना उन्हें बहुत सताती है । आदमी अपनी प्रतिक्रिया के द्वारा जितना दुःख पाता है, उतना दुःख किसी घटना से नहीं पाता। यह मानना भ्रान्ति है कि घटना दुःख देती है। घटना में दुःख देने की शक्ति नहीं है। दुःख स्वयं की वेदना का फलित है । जो व्यक्ति जितनी संवेदना करता है वह उतना ही ज्यादा दुःखी बनता है और जिस व्यक्ति में संवेदना जितनी कम होती है वह उतना ही कम दुःखी होता है । दुःख भी स्वयं की संवेदना से होता है। पदार्थ में न दुःख देने की क्षमता है और न सुख देने की क्षमता है। सुख और दुःख हमारी संवेदना में होते हैं। जब विद्युत्-प्रवाह के साथ हमारा चित्तं जुड़ता है तब हमें सुख-दुःख का संवेदन होने लग जाता है । यह प्रतिक्रियात्मक चेतना इसीलिए बनती है कि हम दूसरों के प्रति अधिक जागरूक हैं।
एक अमेरिकन अभिनेता ने लिखा था--'मैंने अपने जीवन में सैकड़ों अभिनय किए । अभिनय करते-करते मेरी चेतना ऐसी बन गई कि अब मुझे पता ही नहीं है कि मैं कौन हूं। सदा अभिनय में ही अपने आपको पाता हूं। मैं स्वयं क्या हूं-इसका मुझे कोई ज्ञान ही नहीं रहा।' ____ अभिनेता कौन नहीं है ? प्रत्येक आदमी अभिनेता है। हर आदमी एक दिन में सैकड़ों अभिनय करता है। यदि किसी व्यक्ति के प्रातःकाल से सायंकाल तक फोटो लिए जाएं तो सैकड़ों प्रकार के पोज आ सकते हैं। कभी आदमी प्रेम की मुद्रा में होता है, स्नेहिल होता है तो कभी क्रोध की मुद्रा बना लेता है, क्रूर हो जाता है। कभी भक्ति-रस में डूब जाता है तो कभी शक्ति का प्रदर्शन करने लग जाता है। व्यक्तित्व के सैकड़ों प्रकार बन जाते हैं । आदमी सैकड़ों मुद्राएं बना लेता है । इस दृष्टि से प्रत्येक आदमी अभिनय करता है । वह अभिनेता है। फिल्म में काम करने वाले अभिनेता कहलाते हैं। पर हर आदमी अपने आप में एक अभिनेता है। उसके सैकड़ों रूप हैं, किन्तु यदि किसी व्यक्ति से पूछा जाए कि तुम कौन हो तो उसका उत्तर कठिन होगा । इसका कारण स्पष्ट होता है कि वह अभिनय करता है, पर अपने आपके प्रति जागरूक नहीं है। - श्वास-दर्शन प्रेक्षाध्यान का प्रथम सोपान है। श्वास हमारे जीवन की बहुत बड़ी घटना है । हमारे व्यक्तित्व के साथ उसका बहुत बड़ा संबंध है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org