Book Title: Dwadasharnay Chakram
Author(s): Labdhisuri
Publisher: Shantinagar Shwetambar Murtipujak Jain Sangh
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कर्कशतार्किकचक्रचक्रवर्ति श्रीमन्मल्लवादिसूरिविरचितम्
द्वादशारनयचक्रम्
प्रथमः विधिभङ्गारः
व्याप्येकस्थमनन्तमन्तवदपि न्यस्तं धियां पाटवे
व्यामोहे तु जगत्प्रतानविसृतिव्यत्यासधीरास्पदम् । वाचां भागमतीत्य वाग्विनियतं गम्यं न गम्यं क्वचित् शेषन्यग्भवनेन शासनमलं जैनं जयत्यूर्जितम् ॥ १ ॥
भ
यदेवंविधं तत्र किमाश्चर्यं जयत्यूर्जितञ्चेति, किंतर्हि ? एवंविधतैव तु प्रतिपादनीया, किमेवं प्रतिपाद्यमस्ति ? प्रतिपादितमेव तत्, द्रव्यार्थपर्यायार्थद्वित्वम् । तदुपष्टम्भविधिभेदपदार्थानामेकवाक्यविधिविधानात् अवबोधसमुद्रावयवीभूतं शासनं दुरवगाहमेवंविधमेव । तद्व्यतिरिक्तशासनिवचनानि प्रत्यक्षानुमान

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