Book Title: Drushtivad ka Swarup Author(s): Hastimal Maharaj Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 4
________________ चौदह पूर्वो के उपर्युक्त ग्रन्थविच्छेद-वस्तु के अतिरिक्त आदि के ४ पूर्वो की क्रमश: ४,१२,८ और १० चूलिकाएं (चुल्ल क्षुल्लक) मानी गई हैं। शेष १० पूर्वो के चुल्ल अर्थात् क्षुल्ल नहीं माने गये हैं। जिस प्रकार पर्वत के शिखर का पर्वत के शेष भाग से सर्वोपरि स्थान होता है उसी प्रकार पूर्वो में चूलिकाओं का स्थान सर्वोपरि माना गया है। अनुयोग-अनुयोग नामक विभाग के मूल प्रथमानुयोग और गण्डिकानुयोग ये दो भेद बताये गए हैं। प्रथम मूल प्रथमानुयोग में अरहन्तों के पंचकल्याणक का विस्तृत विवरण तथा दूसरे गंडिकानुयोग में कुलकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव आदि महापुरुषों का चरित्र दिया गया था। __ दृष्टिवाद के इस चतुर्थ विभाग अनुयोग में इतनी महत्त्वपूर्ण विपुल सामग्री विद्यमान थी कि उसे जैन धर्म का प्राचीन इतिहास अथवा जैन पुराण की संज्ञा से अभिहित किया जा सकता है। __ दिगम्बर परम्परा में इस चतुर्थ विभाग का सामान्य नाम प्रथमानुयोग पाया जाता है। चूलिका-समवायांग और नन्दीसूत्र में आदि के चार पूर्वो की जो चूलिकाएं बताई गई हैं, उन्हीं चूलिकाओं का दृष्टिवाद के इस पंचम विभाग में समावेश किया गया है। यथा- “से कि तं चूलियाओ? चूलियाओ आइल्लाणं चउण्हं पुव्वाणं चूलिया, सेसाई अचूलियाई, से तं चूलियाओ।' पर दिगम्बर परम्परा में जलगत, स्थलगत, मायागत, रूपगत और आकाशगत-ये पांच प्रकार की चूलिकाएं बताई गई हैं। संदर्भ१. दृष्टयो दर्शनानि नया वा उच्यन्ते अभिधीयन्ते पतन्ति वा अवतरन्ति यत्रासौ दृष्टिवादो, दृष्टिपातो वा। प्रवचनपुरुषस्य द्वादशेऽङ्गे -स्थानांग वृत्ति ठा.४.उ.१ २. दृष्टिदर्शनं सम्यक्त्वादि, वदनं वादो, दृष्टिना वादो दृष्टिवादः -प्रवचन सारोद्वार, द्वार १४४ ३. गोयमा! जंबूढीवे णं दीवे भारहे वासे इमोसे ओसप्पिणीए ममं एग वाससहस्सं पुवगए अणुसज्जिस्सइ। -भगवतीसूत्र, शतक २०, 3.८, सूत्र ६७७ सुत्तागमे, पृ. ८०४ ४. दिठिवायस्स of दस नामधिज्जा पण्णता। तं जहा दिठिवाएइ वा, हेतुवाएइ वा, भूयवाएइ वा. तच्चावाएड वा, सम्मावाएइ वा, धम्मावाएइ वा, भासाविजएइ वा, पुबगएइ वा, अणुओगगएइ वा, सबपाणभूयजीवसत्तसुहावहेइ वा।। -स्थानांग सूत्र ठा. १० ५. से कि दिठिवाए? से समासओ पंचविहे पण्णते तं जहा परिकम्मे, सुत्ताई, पुव्वगए, अणुओगे चूलिया (नन्दी) ६. पढम उप्पायपुव्व, तत्थ सब्वदव्वाणं पज्जवाण य उप्पायभावमंगीकाउं पण्णवणा कया। (नन्दीचूर्णि) ७ दस त्रोहस अट्ठ अट्ठारसेव बारस दुवे य वत्थूणि। सोलस तीसा वीसा पण्णरस अणुप्पवायम्मि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5