Book Title: Digambar Jain Puran Sahitya Author(s): Pannalal Jain Publisher: Z_Acharya_Shantisagar_Janma_Shatabdi_Mahotsav_Smruti_Granth_012022.pdf View full book textPage 2
________________ साहित्य दिगम्बर जैन ! पुराण १८३ देवी भागवत में उपर्युक्त स्कन्द, वामन ब्रह्माण्ड, मारीच और भार्गव के स्थान में क्रमशः शिव, मानव, आदित्य, भागवत और वासिष्ठ इन नामों का उल्लेख आया है । I इन महापुराणों और उपपुराणों के सिवाय अन्य भी गणेश, मौद्गल, देवी, कल्की, आदि अनेक पुराण उपलब्ध हैं । इन सब के वर्णनीय विषयों का बहुत ही विस्तार है । कितने ही इतिहासज्ञ लोगों का अभ है - आधुनिक पुराणों की रचना प्रायः इसवीय सन् ३०० से ८०० के बीच में हुई है । जैसा कि जैनेतर साहित्य में पुराणों और उपपुराणों का विभाग मिलता है वैसा जैन साहित्य में नहीं पाया जाता है । फिर भी संख्या की दृष्टि से यदि विचार किया जावे तो चौबीस तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ नारायण, ९ प्रतिनारायण और ९ बलभद्रों की अपेक्षा जैन साहित्य में भी पुराणों की संख्या बहुत है । परन्तु जैन साहित्य में इन सब के पुराणों का संमिलित रीति से ही संकलन मिलता है। जैन समाज में जो भी पुराण साहित्य उपलब्ध है वह अपने ढंग का निराला है। जहां अन्य पुराणकार इतिवृत्त की यथार्थता सुरक्षित नहीं रख सके हैं वहा जैन - पुराणकारों ने इतिवृत्त की यथार्थता को अधिक सुरक्षित रखा है । इसीलिये आज के निष्पक्ष विद्वानों का यह स्पष्ट मत है कि हमें प्राक्कालीन भारतीय परिस्थिति को जानने के लिये जैन पुराणों से उनके कथा-ग्रन्थों से जो सहाय्य प्राप्त होता है वह अन्य पुराणों से नहीं । यहा मैं कुछ दिगम्बर जैन पुराणों की सूची दे रहा हूं जिससे जैन समाज समझ सके कि अभी - हमने कितने चमकते हुए हीरे तिजोडियों में बन्द कर रक्खे हैं यह सूची पं. परमानन्दजी शास्त्री से प्राप्त हुई है । पुराण नाम १ पद्म पुराण - पद्म चरित २ महा पुराण (आदि पुराण) ३ उत्तर पुराण ४ अजित पुराण ५ आदि पुराण (कन्नड) ६ ७ "" ८ उत्तर पुराण ९ कर्णामृत पुराण १० जयकुमार पुराण ११ चन्द्रप्रभ पुराण १२ चामुण्ड पुराण (कन्नड) १३ धर्मनाथ पुराण (क) Jain Education International " कर्ता रविषेण जिनसेन गुणभद्र अरुणमणि कवि पंप भ. चन्द्रकीर्ति भ. सकलकीर्ति 35 केशवसेन ब्र. कामराज कवि अगादेव चामुण्डराय कवि बाहुबली For Private & Personal Use Only रचना संवत ७०५ नवीं शती १० वी शती १७१६ १७ वी शती १५ वी शती 5 १६८८ १५५५ शक ९८० www.jainelibrary.orgPage Navigation
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