Book Title: Digambar Jain Puran Sahitya
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Z_Acharya_Shantisagar_Janma_Shatabdi_Mahotsav_Smruti_Granth_012022.pdf

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Page 5
________________ आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ घोषित किया है कि अमुक विषय में जैन मान्यता सत्य है। जैनाचार्यों ने स्त्री या पुरुष जिसका भी चरित्र चित्रण किया है वह उस व्यक्ति के अन्तस्थल को सामने रख देने वाला है। इस संदर्भ में जिनसेन के महापुराण, गुणभद्र के उत्तरपुराण, रविषेण के पद्मपुराण और पुन्नाटसंघीय जिनसेन के हरिवंश पुराण पर कुछ प्रकाश डालना आवश्यक जान पडता है महापुराण __ महापुराण के दो खण्ड हैं, प्रथम आदिपुराण या पूर्वपुराण और द्वितीय उत्तर पुराण | आदिपुराण ४७ पर्यों में पूर्ण हुआ है जिसके ४२ पर्व पूर्ण तथा ४३ वे पर्व के ३ श्लोक भगवज्जिनसेनाचार्य के द्वारा निर्मित हैं और अवशिष्ट ५ पर्व तथा उत्तर पुराण श्री जिनसेनाचार्य के प्रमुख शिष्य श्रीगुणभद्राचार्य के द्वारा विरचित है। आदिपुराण, पुराणकाल के सन्धिकाल की रचना है अतः यह न केवल पुराण ग्रन्थ है अपितु काव्य ग्रन्थ भी है, काव्य ही नहीं महाकाव्य है। महाकाव्य के जो लक्षण हैं वे सब इसमें प्रस्फुटित हैं । श्रीजिनसेनाचार्य ने प्रथम पर्व में काव्य और महाकाव्य की चर्चा करते हुए निम्नाङ्कित भाव प्रकट किया है 'काव्य स्वरूप के जाननेवाले विद्वान् , कवि के भाव अथवा कार्य को काव्य कहते हैं । कवि का यह काव्य सर्व सम्मत अर्थ से सहित, ग्राम्यदोष से रहित, अलंकार से युक्त और प्रसाद आदि गुणों से सुशोभित होता है। 'कितने ही विद्वान् अर्थ की सुन्दरता को वाणी का अलंकार कहते हैं और कितने ही पदों की सुन्दरता को । किन्तु हमारा मत है कि अर्थ और पद दोनों की सुन्दरता ही वाणी का अलंकार है'। 'सज्जन पुरुषों का जो काव्य अलंकारसहित शृङ्गारादि रसों से युक्त, सौन्दर्य से ओत प्रोत और उद्दिष्टतारहित अर्थात् मौलिक होता है वह सरस्वती देवी के मुख के समान आचरण करता है। जिस काव्य में न तो रीति की रमणीयता है, न पदों का लालित्य है, और न रस का ही प्रवाह है उसे काव्य नहीं कहना चाहिये, वह तो केवल कानों को दुःख देनेवाली ग्रामीण भाषा ही है । जो अनेक अर्थों को सूचित करनेवाले पदविन्यास से सहित, मनोहर रीतियों से युक्त एवं स्पष्ट अर्थ से उद्भासित प्रबन्धों महाकाव्यों की रचना करते हैं वे महाकवि कहलाते हैं। ___ 'जो प्राचीन काल से सम्बन्ध रखने वाला हो, जिसमें तीर्थंकर 'चक्रवर्ती आदि महापुरुषों के चरित्र का चित्रण किया गया हो तथा जो धर्म, अर्थ और काम के फलको दिखाने वाला हो उसे महाकाव्य कहते हैं ।' _ 'किसी एक प्रकरण को लेकर कुछ श्लोकों की रचना तो सभी कर सकते हैं परन्तु पूर्वापर का सम्बन्ध मिलाते हुए किसी प्रबन्ध की रचना करना कठिन कार्य है"। १ पर्व १, श्लोक ९४-१०५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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