Book Title: Dhyanavichargranth
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 78
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ; www.kobatirth.org ધ્યાન વિચાર સંવત્ ૧૯૫૮ ચૈત્ર સુદી ૧ भु. परा अन्त्यमङ्गलम्, धर्म ध्यान प्रभावथी, कर्मकलङ्क विनाश; शुक्ल ध्यान प्रभावथी, मुक्तिपुरीमां वास. . सप्तभंगीने सातनय, चार निक्षेप सार; गुरुगमथी मन धारतां, पामे भवजलपार. द्रव्य गुण पर्यायने, सम्यग् ध्यावे जीव; निश्चयने व्यवहारथी करतां पामे शिव. ओगाणेश अठावननो, चैत्र शुक्ल सुखकार; प्रतिप्रदादिन पूर्ण ग्रन्थ, करतां हर्ष अपारनगर पादरा शोभतुं, शान्तिनाथ सुखकार; वकील मोहनलाल भाइ, विज्ञप्ति करनार विज्ञप्तिथी ए रच्यो, नरनारी सुखकार; योग्य जीवने सम्जे, ध्यान सदा हितकार. आगम समुद्र अपार छे, कोइक पामे पार; श्रुतविन्दु अमृत तो सर्व रोग हरनार. गुरु सुखसागर प्रेमथी, नाठा संघळा क्लेश; बुद्धिसागर प्रेमथी, रचतां शांति हमेश 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "A For Private And Personal Use Only १ ર ८ कियोद्धारक श्रीनेए सागरजी सच्छिष्य चारित्र चूडामणि श्रीरविसागरजी ताच्छष्य शान्तमूर्ति श्री सुखसागरजी तच्छिष्य श्रीबुद्धिसागर रचित ध्यानविचारग्रन्थ समाप्त ॐ शांतिः ३ લેખક મુનિ બુદ્ધિસાગર ४ ६

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