Book Title: Dhyan Swarup Vishleshan
Author(s): Hastimal Acharya
Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf

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Page 8
________________ ३१२ • मैत्री करुणामुदितोपेक्षाणां सुखदुःखपुण्यापुण्य विषयाणां भावनातश्चित्त प्रसादनम् । - योग दर्शन, समाधिपाद, सूत्र ३३ व्यक्तित्व एवं कृतित्व 1 इस प्रकार का शुद्धिकरण पूर्वक स्थिरीकरण सूत्रार्थ - चिन्तन प्रथम प्रहर में और द्वितीय प्रहर में ध्यान अपेक्षित है । रात्रि के कार्यक्रम में भी इसी प्रकार का विधान किया गया है । यह ध्यान सूत्रार्थ के चिन्तन-मनन में ही हो सकता है, न कि चित्त वृत्तियों के नितान्त निरोध के रूप में । जैन परम्परा की ध्यान परिपाटी के अनुसार किसी एक विषय पर तल्लीनता से चिन्तन करना ध्यान का प्रथम प्रकार है । इसे सविकल्प ध्यान तथा स्थिरैक भाव रूप ध्यान के दूसरे प्रकार को निर्विकल्प ध्यान कहते हैं । शुक्ल ध्यान में ही ध्यान की यह निर्विकल्प दशा हो सकती है । शरीर की अन्यान्य क्रियाओं के चलते रहने पर भी यह ध्यान निर्बाध गति से चलता रहता है, ऐसा जैन शास्त्रों का मन्तव्य है । सविकल्प ध्यान धर्म ध्यान के प्राणा विजए, वाय विजए, विवाग विजए और संठाण विजए-इन चार भेदों का उल्लेख करते हुए पहले बताया जा चुका है कि उनमें क्रमश: प्रज्ञा, रागादि दोषों, कर्म के शुभाशुभ फस और विश्वाधार भूत लोक के स्वरूप पर विचार विचार किया जाता है तथा निर्विकल्प शुक्ल ध्यान में ग्रात्म-स्वरूप पर ही विचार किया जाता है। 1 ध्यान के प्रभेद : प्रकारान्तर से ध्यान के अन्य प्रभेद भी किये गये हैं । जैसे - १. पिण्डस्थ, २. पदस्थ, ३. स्वरूपस्थ और ४. रूपातीत । १. पिण्डस्थ ध्यान में- पार्थिवी आदि पंचविध धारणा में मेरुगिरि के उच्चतम शिखर पर स्थित स्फटिक रत्न के सिंहासन पर विराजमान चन्द्रसम समुज्ज्वल अरिहन्त के समान शुद्ध स्वरूप में आत्मा का ध्यान किया जाता है । २. दूसरे पदस्थ ध्यान में 'अहं' आदि मन्त्र पदों का नाभि या हृदय में अष्टदल कमल आदि पर चिन्तन किया जाता है । ३. तीसरे रूपस्थ ध्यान में अनन्त चतुष्टय युक्त देवाधिदेव अरिहन्त का चौंतीस अतिशयों के साथ चिन्तन किया जाता है । Jain Educationa International निराकार ध्यान को कठिन और असाध्य समझकर जो साधक किसी प्रकृति विशेष का आलम्बन लेना चाहते हैं, उनके लिये भी अपने इष्ट गुरुदेव की त्याग-विरागपूर्ण मुद्रा का ध्यान सरल और सुसाध्य हो सकता हैं । इस For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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