Book Title: Dharmik Pariprekshya me Aaj ka Shravak
Author(s): Subhash Kothari
Publisher: Z_Jaganmohanlal_Pandit_Sadhuwad_Granth_012026.pdf

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________________ ६८ पं० जगमोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ [खण्ड हेमचन्द्र-योगशास्त्र, पं० आशाधर-सागार धर्मामृत" ने इन सद्गुणों का उल्लेख किया है। योगशास्त्र में इन्हें मार्गानुसारी के गुण कहकर निम्न प्रकार नामांकित किया है : १. न्याय-नीति से धन का उपार्जन करना । २. शिष्ट पुरुषों के आचार की प्रशंसा करना । ३. अपने कुल व शील के समान स्तर वालों से परिणय सम्बन्ध करना। ४. पापों से भय । ५. प्रसिद्ध देशाचार का पालन करना । ६. परनिन्दा नहीं करना । ७. एकदम खुले व बन्द स्थान पर घर का निर्माण नहीं करना । ८. घर के बाहर जाने के द्वार अनेक नहीं हो । ९. सदाचारी पुरुषों की संगति करना। १०. माता-पिता को सेवा भक्ति करना । ११. चित्त में क्षोम उत्पन्न करने वाले स्थान से दूर रहना । १२. निन्दनीय काम में प्रवृत्ति नहीं करना । १३. आय के अनुसार व्यय करना । १४. आर्थिक स्थिति के अनुसार कपड़े पहनना। १५. बुद्धि के आठ गुणों से युक्त होकर धर्म श्रवण करना । १६. अजीर्ण होने पर भोजन नहीं करना । १७. नियत समय पर संतोष से भोजन करें। १८. चार पुरुषार्थों का सेवन करना। १९. अतिथि–आदि का सत्कार करना। २०. कमी दुराग्रह के वशीभूत नहीं हो । २१. गुणों का पक्षपाती हो। २२. देश व काल के प्रतिकूल आचरण नहीं करना। २३. अपनी सामर्थ्य के अनुसार काम करें। २४. सदाचारी का आदर करें। २५. अपने आश्रितों का पालन पोषण करें। २६. दीर्घदर्शी हो। २७. अपने हित-अहित को समझें। २८. कृतज्ञ हो। २९. सदाचार व सेवा द्वारा जनता का प्रेम सम्पादित करें। ३०. लज्जाशील हो। ३१. दयावान हो। ५. सागार धर्मामृत-अध्याय-एक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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