Book Title: Dharmdipika Vyakaranam
Author(s): Mangalvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 8
________________ [5] (8) तव प्रसादात् गुरु-देवते ! मया काश्यां त्वदघ्रि-द्रुतले प्रभाविनि / स्थित्वा सुखं ज्ञानलवः समर्जितः शाब्दादिशानेष्वपि मूढबुद्धिना // तवोपकारोऽयमनल्परूपः / क्षणे क्षणे मे स्मरणं समेति / . स्मृति-क्षणेऽश्रूणि पतन्ति दुग्भ्यां त्वहिप्रयोगाति निपीडितस्य // . (10) शल्यं पुनमें हृदयस्थमेत विशेषतो मां भगवन् ! दुनोति / यथोचितं कर्तुमपारयं न सेवां त्वदीय-क्रमयामलस्य.॥ (11) इदं लघु व्याकरणाख्यपुष्प निर्वापधाट्य हि पुरस्तव स्तात् / आश्वासकं मे मनसोऽधमर्णशिरोमणेदीन-विहीनशक्तेः / /

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