Book Title: Dharmayatan Avasa tatha Karobar Ek Sukh Samruddhi Karaka Yantra Author(s): Sohanlal Devot Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf View full book textPage 2
________________ किया गया है, वह लोक प्रकृति में प्रवेश करने की विधियां और राजमार्ग हैं । अर्थात् मैं जहां तक समझा हूं पूर्वाचार्यों ने मानव मन की प्रकृत इच्छाओं की पूर्ति को अष्ट विधाओं व अष्ट राजमार्गों के रूप में वर्गीकृत किया है। यहां समस्त-विधाओं के विवेचन पर न जाकर शान्तिक-पौष्टिक-उभय पक्षी विधा व अभिकर्म के अन्तर्गत अपेक्षित परिशोधित व परीक्षित “धर्मायतन, आवास तथा कारोबार : एक सुख समृद्धि कारक तन्त्र” को ही प्रस्तुत करना अधिक उपादेय होगा। शान्तिक व पौष्टिक अभिकर्म जिन ध्वनियों के वैज्ञानिक सन्निवेश के घर्षण व अपेक्षित समय में अपेक्षित वस्तु व पदार्थ के अनुपातिक संयोजन के रसायनिक प्रक्रिया द्वारा रोग निवारण, भूत-प्रेत, ग्रह पीड़ा मानसिक तनाव से मुक्ति तथा धन-धान्य, सौभाग्य, यश-कीर्ति तथा सन्तान आदि की प्राप्ति हो उन ध्वनियों के सन्निवेश को तथा वस्तुओं के संयोजन के तन्त्रों को शान्तिक पौष्टिक मन्त्रयन्त्र-तन्त्र किंवा शान्तिक पौष्टिक अभिकर्म कहते हैं। उपर्युक्त शान्तिक पौष्टिक अभिकर्म सम्बन्धी साहित्य जैन मन्त्र शास्त्रों में प्रचूर मात्रा में उपलब्ध होता है। उनमें से धर्मायतन, आवास व कारोबार अर्थात् मन्दिर, पाठशाला धर्मशाला, गुरूकुल, छात्रावास, ब्रह्मचर्याश्रम, वसतिका, गृहस्थ के रहने का मकान, दुकान, गोदाम तथा कारखाना आदि के निर्माण के प्रारम्भ व पूर्णता के अन्त में अथवा किसी भी प्रकार की अशान्ति का अनुभव होने पर एक पक्षीय करने योग्य क्रिया किंवा तन्त्र के सम्बन्ध में जो खण्ड रूप सामग्री यत्र-तत्र उपलब्ध होती है वह लाभ की अपेक्षा तथा तान्त्रिक दृष्टि से अपूर्ण ही कही जा सकती है । इस तन्त्र सम्बन्धी सामग्री को अलग-अलग हस्तलिखित पुस्तकों, गुटकों तथा पतड़ों से प्राप्त कर एक क्रम से एक स्थान पर इकट्ठी करने पर जिस इकाई का निर्माण होता है उस पर शोधकर्ता द्वारा विगत दो दशकों से भी अधिक समय से प्रायोगिक कार्य चलता रहा तथा उस मूल इकाई में १. समय विशेष में विधिपूर्वक-वस्तु विशेष व पदार्थ विशेष का संग्रह किंवा मिश्रण के रसायनिक प्रक्रिया द्वारा अपेक्षित प्राणी व पदार्थ को प्रभावित किया जाता है उसे मन्त्र शास्त्र में तन्त्र के नाम से जाना जाता है। २. अष्टविधाएं- १. शान्ति २. पुष्टि ३. मोहन - आकर्षण ४. वशीकरण ५. स्तम्भन ६. विद्वेषण ७. उच्चाटन ८. निषेध अभिकर्म धर्मायतन, आवास तथा कारोबार : एक सुख समृद्धि कारक तन्त्र २०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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