Book Title: Dashvaikalik Sutra me Guptitray ka Vivechan Author(s): Shweta Jain Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf View full book textPage 8
________________ 10 जनवरी 2011 जिनवाणी 6. स्नान करना । 7. गन्ध विलेपन करना । 8. माला आदि धारण करना । 9. बीजन - पंखा आदि से हवा करना । 10. सन्निधि- खाद्य, पेय आदि वस्तुओं का संग्रह करना । 11. गृहि- अमत्र- गृहस्थ के पात्र में भोजन करना । 12. राज- पिण्ड- राजा के घर का आहार ग्रहण करना । 13. किमिच्छक- क्या चाहिए? ऐसा पूछ कर दिया हुआ आहारादि ग्रहण करना। 14. संबाधन - शरीर मर्दन करना । 15. दंतप्रधावन करना । 16. संपृच्छन- गृहस्थों से सावद्य प्रश्न करना । 17. देह - प्रलोकन - दर्पण आदि में शरीर देखना । 18. अष्टापद - शतरंज खेलना । 19. नालिका - द्यूत विशेष खेलना । 20. छत्र - धारण करना । 21. चिकित्सा - रोग का प्रतिकार करना । 22. जूता पहनना 23. अग्नि समारम्भ - सर्दी से बचने के लिए अग्नि जलाना । 24. शय्यातर - पिण्ड- स्थान दाता के घर से भिक्षा लेना । 25. आसंदी (कुर्सी / मञ्चादि) का व्यवहार करना । 26. पर्यङ्क (पलंग) का व्यवहार करना । 27. गृहि-निषद्या - भिक्षा करते समय गृहस्थ के घर बैठना । 28. गात्र - उद्वर्तन- उबटन करना । 29. गृहि वैयावृत्त्य - गृहस्थ को भोजन का संविभाग देना, गृहस्थ की सेवा करना । 30. आजीववृत्तिता - जाति, कुल, गण, शिल्प और कर्म का अवलम्बन लेकर भिक्षा प्राप्त करना । 31. तप्तानिर्वृतभोजित्व- अर्ध - पक्व सजीव वस्तु का उपभोग करना । 32. आतुर स्मरण - आतुर दशा में भुक्त भोगों का स्मरण करना । 33. सचित्त मूलक- सजीव मूली आदि का सेवन करना । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only 277 www.jainelibrary.orgPage Navigation
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