Book Title: Dash lakshan Parva Dashlakshan Dharm Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Z_Shwetambar_Sthanakvasi_Jain_Sabha_Hirak_Jayanti_Granth_012052.pdf View full book textPage 2
________________ दशलक्षण पर्व / दशलक्षण धर्म ५१७ श्रद्धा का अधिकारी भी नहीं होता है और इस प्रकार जैनत्व से भी में जब यह शक्तिमद तीव्र होता है तो वे दूसरे राष्ट्रों पर आक्रमण च्युत हो जाता है। के लिए बड़े ही आतुर हो जाते हैं और छोटी सी बात के लिए भी बौद्ध परम्परा में क्षमा-बौद्ध परम्परा में भी क्षमा का महत्त्व आक्रमण कर देते हैं। (४) तपमद-तपस्या का अहंकार करना। व्यक्ति निर्विवाद रूप से मान्य है। कहा गया है कि आर्य विनय के अनुसार में जब तप का अहंकार जागृत होता है तो वह साधना से गिर जाता इससे उन्नति होती है जो अपने अपराध को स्वीकार करता है और है। जैन कथा-साहित्य में कुरुगुडुक केवली की कथा इस बात को भविष्य में संयत रहता है। संयुत्तनिकाय में कहा गया है कि क्षमा बड़े ही सुन्दर रूप में चित्रित करती है कि तप का अहंकार करने से बढ़कर अन्य कुछ नहीं है। क्षमा ही परम तप है।११ आचार्य वाले साधना के क्षेत्र में कितने पीछे रह जाते हैं। (५) रूपमदशान्तिरक्षित ने क्षान्ति- पारमिता (क्षमा-धर्म) का सविस्तार सजीव शारीरिक सौन्दर्य का अहंकार करना। रूपमद व्यक्ति में अहंकार की विवेचन किया है, वे लिखते हैं-द्वेष के समान पाप नहीं है और वृत्ति जागृत कर दूसरे को अपने से निम्न समझने की भावना उत्पन्न क्षमा के समान तप नहीं है, इसलिए विविध प्रकार के यत्नों से क्षमा- करता है और इस प्रकार एक प्रकार की असमानता का बीज बोता भावना करनी चाहिए।१२ है। पाश्चात्य राष्ट्रों में श्वेत और काली जातियों के बीच चलने वाले वैदिक परम्परा में क्षमा-वैदिक परम्परा में भी क्षमा का महत्त्व संघर्ष के मूल में रूप और जाति की अभिमान ही प्रमुख है। (६) माना गया है। मनु ने दस धर्मों में क्षमा को धर्म माना है। गीता में ज्ञानमद-बुद्धि अथवा विद्या का अहंकार करना। ज्ञान का क्षमा को दैवी-सम्पदा एवं भगवान् की ही एक वृत्ति कहा गया है। अहंकार जब व्यक्ति में आता है तो वह दूसरे लोगों को अपने से छोटा महाभारत के उद्योग पर्व में क्षमा के सम्बन्ध में विस्तृत विवेचन है। मानने लगता है। इस प्रकार एक ओर वह दूसरों के अनुभवों से लाभ उसमें कहा गया है कि क्षमा असमर्थ मनुष्यों का गुण है, तथा समर्थ उठाने से वंचित रहता है तो दूसरी ओर बुद्धि का अभिमान स्वयं उसके मनुष्यों का भूषण है। हे राजन् ! ये दो प्रकार के पुरुष स्वर्ग के भी ज्ञान उपलब्धि के प्रयत्नों में बाधक बनता है। इस प्रकार उसके ज्ञान ऊपर स्थान पाते हैं-(१) शक्तिशाली होने पर भी क्षमा करने वाला का विकास कुण्ठित हो जाता है। (७) ऐश्वर्यमद-धन-सम्पदा और और (२) निर्धन होने पर भी दान देने वाला। क्षमा, द्वेष को दूर करती प्रतिष्ठा का अहंकार करना। यह भी समाज में वर्ग-विद्वेष का कारण है, इसलिए वह एक महत्त्वपूर्ण सद्गुण है। और व्यक्ति के अन्दर एक प्रकार की असमानता की वृत्ति को जन्म देता है। (८) सत्तामद-पद, अधिकार आदि का घमण्ड करना, जैसे२. मार्दव गृहस्थ वर्ग में राजा, सेनापति, मंत्री आदि के पद, श्रमण-संस्था मार्दव का अर्थ विनीतता या कोमलता है। मान कषाय या अहंकार में आचार्य, उपाध्याय, गणि आदि के पद। जैन परम्परा के अनुसार को उपशान्त करने के लिए मार्दव (विनय) धर्म के पालन का निर्देश जब तक अहंभाव का विगलन होकर विनम्रता नहीं आती तब तक है। विनय अहंकार का प्रतियोगी है व उससे अहंकार पर विजय प्राप्त व्यक्ति नैतिक विकास की दशा में आगे नहीं बढ़ सकता। उत्तराध्ययनसूत्र की जाती है।५ उत्तराध्ययनसूत्र में कहा है कि धर्म का मूल विनय में कहा है कि विनय के स्वरूप को जानकर नम्र बनाने वाले बुद्धिमान है। १६ उत्तराध्ययनसूत्र एवं दशवकालिकसूत्र में विनय का विस्तृत विवेचन की लोक में प्रशंसा होती है, जिस प्रकार प्राणियों के लिए पृथ्वी आधारभूत है। जैन परम्परा में अविनय का कारण अभिमान कहा गया है। अभिमान है, उसी प्रकार वह भी सद्गुणों का आधार होता है।१७ आठ प्रकार के हैं- (१) जातिमद-जाति का अहंकार करना, जैसे बौद्ध परम्परा में अहंकार की निन्दा-बौद्ध परम्परा में अहंकार मैं ब्राह्मण हूँ, मैं क्षत्रिय हूँ जाति के अहंकार के कारण उच्च जाति को साधना की दृष्टि से अनुचित माना गया है। अंगुत्तरनिकाय में तीन में निम्न जाति के लोगों के प्रति घृणा की वृत्ति उत्पन्न होती है और मदों का विवेचन उपलब्ध है। भिक्षुओं! यौवनमद में, आरोग्यमद में, परिणामस्वरूप सामाजिक जीवन में एक प्रकार की दुर्भावना और विषमता जीवनमद में मत्त अज्ञानी सामान्यजन शरीर से दुष्कर्म करता है, वाणी उत्पन्न होती है। (२) कुलमद-परिवार की कुलीनता का अहंकार करना। से दुष्कर्म करता है तथा मन से दुष्कर्म करता है। वह शरीर, वाणी कुलमद व्यक्ति को दो तरह से नीचे गिराता है। एक तो यह कि जब तथा मन से दुष्कर्म करके शरीर के छूटने पर, मरने के अनन्तर अपाय, व्यक्ति में कुल का अभिमान जागृत होता है तो वह दूसरों को अपने दुर्गति, पतन, एवं नरक को प्राप्त होता है। भिक्षुओं! आरोग्य-मद से निम्न समझने लगता है और इस प्रकार सामाजिक जीवन में असमानता से मत्त भिक्षु शिक्षा का त्याग कर पतनोन्मुख होता है। भिक्षुओं! जीवनमद की वृत्ति को जन्म देता है। दूसरे कुल के अहंकार के कारण वह से मत्त भिक्षु शिक्षा का त्यागकर पतनोन्मुख होता है। सुत्तनिपात में कठिन परिस्थितियों में भी श्रम करने से जी चुराता है, जैसे कि मैं कहा है कि जो मनुष्य जाति,धन और गोत्र का गर्व करता है, वह राजकुल का हूँ; अतः अमुक निम्न श्रेणी का व्यवसाय या कार्य कैसे उसकी अवनति का कारण है। १९ इस प्रकार बौद्ध धर्म में १. यौवन, करूं? इस प्रकार झूठी प्रतिष्ठा के व्यामोह में अपने कर्तव्य से विमुख २. आरोग्य. ३. जीवन, ४. जाति, ५. धन और ६.गोत्र इन छह होता है व समाज पर भार बनकर रहता है। (३) बलमद-शारीरिक मदों से बचने का निर्देश है। शक्ति का अहंकार करना। शक्ति का अहं व्यक्ति में भावावेश उत्पन्न गीता में अहंकारवृत्ति की निन्दा- गीता के अनुसार अहंकार करता है, और परिणामस्वरूप व्यक्ति का अभाव हो जाता है। राष्ट्रों को पतन का कारण माना गया है। जो यह अहंकार करता है कि मैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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