Book Title: Damyanti Katha Champu
Author(s): Vinaysagar
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 15
________________ की सूचना देने वाला एक दूसरा लेख हत्तित्तूर ग्राम (धारवाड) में ९७३ विक्रमी संवत् का मिला है। इन्द्रराज के पिता की मृत्यु हो गई थी। अतः उसने राज्याधिकार सीधे कृष्णराज से प्राप्त किया था। अतएव त्रिविक्रम भट्ट कृष्णराज (द्वितीय) के सभा-पण्डित रहे होंगे। त्रिविक्रम भट्ट के पुत्र भास्कर भट्ट को भोजराज ने विद्यापति उपाधि से विभूषित किया था। भास्कर भट्ट का पुत्र गोविन्द हुआ। उससे सूर्य की तरह तेजस्वी प्रभाकर उत्पन्न हुआ। प्रभाकर का पुत्र सज्जनों के लिये पूर्णकाम मनोरथ हुआ। उसके पुत्र कविसम्राट महेश्वराचार्य उत्पन्न हुए। ज्योतिर्विद् भास्कराचार्य इन्हीं के पुत्र थे। इस प्रकार भास्कराचार्य त्रिविक्रम भट्ट के वंशज थे-इस बात को डॉ० भाउदाजी ने नासिक के समीप प्राप्त एक ताम्रलेख से प्रमाणित किया है। ताम्रलेख का कुछ अंश इस प्रकार है शाण्डिल्यवंशे कविचक्रवर्ती, त्रिविक्रमोऽभूत्तनयोऽस्य जातः। यो भोजराजेन कृताभिधानो, विद्यापतिर्भास्करभट्टनामा॥ १६॥ तस्माद् गोविन्दसर्वज्ञो जातो गोविन्दसन्निभः। प्रभाकरः सुतस्तस्मात् प्रभाकर इवापरः॥ १७॥ तस्मान्मनोरथो जातः सतां पूर्णमनोरथः। श्रीमान्महेश्वराचार्यस्ततोऽजनि कवीश्वरः॥ १८॥ तत्सूनुः कविवृन्दवन्दितपदः सद्वेदविद्यालताकन्दः कंसरिपुप्रसादितपदः सर्वज्ञविद्यासदः। यच्छिष्यैः सह कोऽपि नो विवदितुं दक्षो विवादी वचित्, श्रीमान्भास्करकोविदः समभवत् सत्कीर्तिपुण्यान्वितः॥ १९॥ लक्ष्मीधराख्योऽखिलसूरिमुख्यो, वेदार्थवित्तार्किकचक्रवर्ती। ऋतुक्रियाकाण्डविचारसारो, विशारदो भास्करनन्दनोऽभूत्॥ २०॥ सर्वशास्त्रार्थदक्षोऽयमिति मत्वा पुरादतः। जैत्रपालेन यो नीतः कृतश्च विबुधाग्रणी॥ २१॥ तस्मात्सुतः सिंहणचक्रवर्ती, दैवज्ञवर्योऽजनि चङ्गदेवः। श्रीभास्कराचार्यनिबद्धशास्त्र-विस्तारहेतोः कुरुते मठं यः॥ २२॥ भास्कररचितग्रन्थाः सिद्धान्तशिरोमणिप्रमुखाः। तवंश्यकृताश्चान्ये व्याख्येया मन्मठे नियतम्॥ २३॥ श्रीसोइदेवेन मठाय दत्तं, हेमादि वा किञ्चिदिहापरैश्च। भूम्यादि सर्वं परिपालनीयं, भविष्यभूपैर्बहुपुण्यवृद्ध्यै ॥ २४॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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