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दमयन्ती द्वारा भेजे हुए किन्नर-मिथुन का वर्णन पुष्कराक्ष ने इस प्रकार किया है
कालमिव कलाबहुलं सर्वरसानुप्रवेशि लवणमिव।
तव नूप सेवां कर्तुं किन्नरयुगलं तया प्रहितम्॥७८ किन्नर-मिथुन ने दमयन्ती की उत्कट प्रेमावस्था का वर्णन इन शब्दों में किया है
संगीतिका त्वदौत्सुक्यात्त्वां स्मरन्ती समूर्च्छना।
किं तु तस्यास्त्वयि स्वामिल्लयभंगो न दृश्यते॥७९ दमयन्ती की गीति से उपमा दी और उसे गीति से भी विशिष्ट बतलाया। उसे सरस्वती के समान बतलाया।
दमयन्ती ने स्वयं भोजन बना कर नल के लिए भेजा। यह जान कर कि नल देवताओं का दूत बन कर आया है वह तूष्णीभाव को प्राप्त हुई; परन्तु उसे अपने दृढ़ प्रेम में पूर्ण विश्वास था। विधाता ने उसे सर्वगुण सम्पन्न बनाया था
दग्धो विधिर्विधत्ते न सर्वगुणसुन्दरं जनं कमपि।
इत्यपवादभयादिव हरिणाक्षी वेधसा विहिता॥१ या उसको किसी और ही ब्रह्मा ने दूसरे ही सौन्दर्यांकण लेकर बनाया है। दमयन्ती के मनोभावों को सखी ने इन शब्दों में व्यक्त किया है
'देव, श्रुतं श्रोतव्यं, अवधीरितो देवादेशः। किं तु न स्वतंत्रेयं, ईश्वरेच्छया प्रवृत्तिनिवृत्तयो यतः प्राणिनाम्, अनालोचनगोचरश्चायमनुरागोऽङ्गनाजनस्य।'
उसका कहना था-न खलु गुणविशेषः प्रेमबंधप्रयोगे । उसने इस प्रकार अपने व्यवहार से ही नल में अनुरक्ति को व्यक्त कर दिया।
प्रेमयोगिनी दमयन्ती का चरित्र कवि ने बड़े ही मनोयोग से चित्रित किया है। उसका प्रेम धीरे-धीरे विकसित हुआ है और प्रत्येक कसौटी पर खरा उतरा है। देवताओं की तुलना में भी उसने एक मानव को प्राथमिकता देकर प्रेम की महत्ता को युग-युग के लिए प्रतिपादित कर दिया है।
सालंकायन वीरसेन का मित्र और मंत्री है। वह विचक्षण विद्वान् और व्यवहार कुशल व्यक्ति था। उसमें आत्मसम्मान की भावना उत्कट रूप से विद्यमान थी। राजसभा में जब नल ने उसको प्रणाम नहीं किया तो उसे बड़ा क्रोध आया। उसने अपनी मूंछों पर हाथ फिराया। भौहों की वक्रता से उसकी मुखमुद्रा भयंकर हो गयी। कुद्ध होने पर भी उसने नल को स्नेहपूर्वक नीति और व्यवहार-कुशलता के विषय में समझाया। उसने जो उपदेश दिया वह कादम्बरी के शुकनासोपदेश के समान महत्त्वपूर्ण है। उसने नल को पुरुषार्थी, निरहंकारी, विनम्र, नीतिज्ञ, संयमी, स्थितबुद्धि, सुशील बनने
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