Book Title: Dakshin Bharatiya ka Jain Puratattva Author(s): Bhagchandra Jain Publisher: Z_Yatindrasuri_Diksha_Shatabdi_Smarak_Granth_012036.pdf View full book textPage 9
________________ -चन्द्रसार मारा इतिहास सिरुकडवूर में एक तालाब की चट्टान पर 28 तीर्थंकरों अनेक वसदियाँ है जो पुरातत्त्व की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। की सौम्य मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। तृतीय शती की एक प्राचीन गुफा भी है यहाँ। मेलचित्तामूर में एक पुरातन मंदिर है, जिसमें प्राचीन अच्छा स्थान है। कहा जाता है यहाँ भगवान पार्श्वनाथ और जैन मूर्तियाँ हैं। कूष्माण्डनी देवी की भी मूर्ति है। यहाँ के मठ में महावीर ने भी बिहार किया था। लगभग ५वीं शताब्दी से यहाँ समृद्ध शास्त्रभंडार भी है। तोण्डूर, तायनूर, पेरुम्बुर्गे, सनुक्के, जैनधर्म का अस्तित्व मिलता है। वैसे यहाँ की जैनपरंपरा तो मुदलूर, सातमंगल, गुडलूर, सीयमंगल,सीदमंगल, विलुक्कं, बहुत पुरानी है। हेमांगद देश यहीं था, जिसके जैन राजा जीवन्धर वोल्लिमेडुपेट्टै, पेरणी, तिरुनंरुकन्डं, सोलवाण्डिपुरं आदि कतिपय थे और सलुववंशीय अनेक राजा भी जैन थे। यहाँ अनेक बसदियाँ ऐसे प्राचीन स्थान हैं, जहाँ पुराने जैनमंदिर तो हैं ही साथ ही हैं, जिनमें त्रिभुवन तिलकमणि मंदिर विशेष उल्लेखनीय है। इसी भूगर्भ से मूर्तियाँ भी निकली हैं।यहाँ शासन देवी-देवताओं की तरह चंद्रनाथ वसदि का भैरोदेवी मण्डप, अम्मनवार वसदि की / भी मर्तियाँ प्राप्त होती हैं। उनमें कृष्णाण्डी और पद्मावती देवी पंक्तिबद चौबीस तीर्थंकरों की मर्तियाँ, चोटार महल में काष्ठ की मूर्तियाँ अधिक लोकप्रिय रही है। स्तम्भ पर उत्कीर्ण नवनारीकुंजर, सिद्धांत वसदि विशेष उल्लेखनीय तंजाऊर जिले के तंजाऊर नगरमें आदिनाथ का प्राचीन है। इसके साथ ही धर्मस्थल की 39 फीट की बाहुबली मूर्ति, जिनालय है, जिसमें सरस्वती, ब्रह्मदेव, ज्वालामालिनी और हलेबिड की शान्तलेश्वर वसदि और होयसलेश्वर वसदि भी कूष्मांडिनी देवियों के मंदिर हैं। तिरुप्पपुगलूर का शैवमंदिर मूलतः पुरातत्त्व की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी हैं। यहाँ सुरक्षित कन्नड और जैनमंदिर था। तिरुनाकेश्वर के भी शैवमंदिर जैनमंदिरों के परिवर्तित संस्कृत के शिलालेख इतिहास की दृष्टि से आकलनीय हैं। रूप हैं। मन्नारगुडि और दीपंगुडि का ज्वालामालिनी मंदिर भी श्रमणबेलगोल कर्नाटक का प्रमुखतम स्थल है, जहां दर्शनीय है। रामनाथपुर जिले के कोविलंकुल में किडार, पुरातत्त्व का हर भाग लहराता रहा है। इसलिए हम यहाँ इसे कुछ पेरिथपट्टन्नं, मंजियूर, सेलवनूर, तिरुनेलवेली जिले के एरुवाडि, विस्तार के साथ प्रस्तुत करना चाहेंगे। अरुगमंगलं, कुलुगुमले, कायल, बलियूर, कोयंपुत्तूर जिले के कर्नाटक धर्मपुरी, विजयमंगल, तिरुमूर्तिमलै, कडुलर (ओटी), कुंभकोण आदि स्थानों पर जैनमूर्तियाँ और मंदिर बिखरे पडे हए हैं। प्राकृतिक सौन्दर्य से हरा-भरा स्थल, लंबे-चौड़े मैदानों तमिलनाडु वस्तुत: कर्नाटक के बाद ऐसा दक्षिणवर्ती जैन से घिरी पहाड़ियाँ, श्वेत सरोवर (बेलगोला) को गोद में समेटे समन्तभद्र, अकलंक जैसे दार्शनिक हुए और संलप्पदिकारं, दबाए रोड मानो गोमटेश मूर्ति की ओर निष्पलक निहार रहे हैं। नीलकेशि तिरुक्करल आदि जैसे ग्रंथ लिखे गए। बेंगलौर से 145 कि.मी. और मैसूर से 110 कि.मी. पर बसे ____ मंगलूर जिले का कारकल एक प्रसिद्ध जैन केन्द्र रहा है। इस छोटे परंतु रमणीय कस्बे में प्राचीन जैन संस्कृति की गहरी यहाँ के सान्तर राजा जैनधर्म के अनुयायी रहे हैं। यह शिलालेखों छाप दिखाई देती है। लगता है, लगभग ई.पू. तीसरी सदी के से प्रमाणित है। कहा जाता है पद्मावती देवी ने उनकी सहायता श्रुतकेवली भद्रबाहु और उनके शिष्य चंद्रगुप्त ससंघ आज भी की थी, भैरवी का रूप धारण कर। तबसे इन राजाओं के नाम के कहीं श्रवणबेलगोला के आसपास रहकर नेमिचंद सिद्धांत चक्रवर्ती साथ भैरव जुड़ गया। यहाँ की प्रसिद्ध मूर्ति भगवान गोमटेश के शिष्य चामुण्डराय द्वारा निर्मित विश्वविश्रुत भगवान् बाहुबली बाहुबली की है, जो 42 फीट ऊँची है। यह मूर्ति एक छोटी श्रवणबेलगोला परिकर में चार स्मारक हैं-(१) छोटा पहाड़ मूर्ति बड़ी कलात्मक और मनोहर है। उसके सामने ब्रह्मदेव (चिक्क बेट्ट)-चंद्रगिरि, (2) बड़ा पहाड़ (दोडवेट)-विन्ध्यगिरि, मानस्तम्भ है, जिसके ऊपर लिखा है इसे जिनदत्त के वंशज (3) नगर और (4) जिननाथपुर। भैरवपुत्र वीर पाण्डव नृपति ने बनवाया। इसी स्थान पर और भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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