Book Title: Chotrish Atishay Varnan Garbhit Simandhar Jin Stavan
Author(s): Mahabodhivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 6
________________ जान्युआरी-2007 जिननइ रहिवा काजि, गढ बीजा मांहि, देवछंदो देविनं करिउ ए । ए समोसरण अधिकार, सहिजि कहिउए संयमनुं सुख भोगववा ए ॥२५॥ चिहुं दसि च्यारइ रूप, जिनवर ! तुम्ह तणा, दि देशन देवीसमइ ए । जोअण एक विस्तार, अशोक उंचो ए, बार गुणो, चुवीसमइ ए ||२६|| ढाल ४ अढीया कांटा ऊंधा थाइ, जेणइ पंथि जिनवर जाइ, भवियण जिन नमो ए अतिशय पंचवीसमो ए । छवीसमइ तरुजाति, अबू जंबू बहु भाति, ते (त) रु, सघला नमइए भवीयण मन गमइ ए ||२७|| देवदुदभि वाजइ पासि, सतावीसमइ रही आकाश, वाया विहुणी ए ते श्रवणे सहु सहुणा ए ॥ अठावीसमइ चिहुं दसि वाय, सीतल सवे सुहाइ, मनगमता वली ए गया ताप सवे टलीए ||२८|| शकुन सवे आकाश, आवइ प्रभूनर पांसि, फिरतां दाहिणाए, अतिशय गुणतीसमो ए ॥ गंधोदक वरसंति, जिहां प्रभू देशण दिति, तिहां रज- रेणु न हइए, अतिशय तीसमो ए ||२९|| पंचवर्ण फूल जाति, जलय-थलय दोय भाति अतिशय एकतीसमए, फूलपगर जंघा लगइ ए ॥ नवि वाधइ नह-- रोम, जव लाधु संयम योग, इंद्री नितु दमो ए अतिशय बत्तीसमो ए ||३०|| समोसरण करजोडि अणहुंत सुर कोडि, अतिशय तेतीसमइए, तुहइ निरंजन ! किमइ ए ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only 51 www.jainelibrary.org

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